इतिहास के महत्वपूर्ण वन लाइनर, जो यूपीएससी, स्टेट पीसीएस, अधीनस्थ सेवाओं एवं अन्य परीक्षाओं के लिए हैं

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सामान्य ज्ञान (इतिहास)


History one liner questions


इतिहास के महत्वपूर्ण वन लाइनर, जो यूपीएससी, स्टेट पीसीएस, अधीनस्थ सेवाओं एवं अन्य परीक्षाओं के लिए हैं-


पुरापाषाण कालीन स्थल


पंजाब में सोन या सोहन नदी की घाटी, जो अब पाकिस्तान में है, उत्तर प्रदेश की बोलन घाटी और राजस्थान के डीडवाना में मरुस्थलीय क्षेत्र, महाराष्ट्र के चिरकी-नेवासा, एवं आंध्र प्रदेश के नागार्जुनकोंडा, भोपाल के पास भीमबेटका की गुफाएँ और शैलाश्रय भी निम्न पुरापाष्ण युग की विशेषताएं दर्शाते हैं।


कश्मीरी नव- पाषाणिक संस्कृति


यह संस्कृति लगभग 3000 ई.पू. से लेकर 1500 ई.पू. तक फैली। इस काल में मानव ने पत्थर के औजारों का उपयोग करना आरंभ कर दिया और धीरे-धीरे कृषि तथा पशुपालन जैसे स्थाई जीवन शैली के आधारभूत तत्वों को अपनाया। बुर्जहोम से प्राप्त पुरातात्विक अवशेषों से पता चलता है कि उस समय के लोग मिट्टी लकड़ी और पत्थर का प्रयोग करके घरों का निर्माण करते थे। उनके घर गोलाकार या अंडाकार आकार के होते थे, और कुछ घरों को दजमान के भीतर गहराई में भी बनाया गया था, जिन्हें गर्तावास भी कहा गया। 


ये गेहूँ, जौ,और दालों की खेती करते थे, जो उनके मुखय् खाद्य स्त्रोत थे।  इके अलावा, उन्होंने पशुपालन की भी शुरुआत की, जिसमें भेड़, बकरी, और गायों को पालना भई शामिल था। इससे उन्हें दुग्ध, मांस, और कपड़ों के लिए ऊन की प्राप्ति होती थी।


ये लोग पत्थर के औजरारों और हथियारों का व्यापक रूप से उपयोग करते थे। मिट्टी के बरतनों पर सुंदर कलाकृतियाँ उकेरी जाती थीं। 


प्रागैतिहासिक शैल कला के महत्वपूर्ण शैल-चित्रकला स्थल- उत्तर प्रदेश का मुरहाना पहाड़, मध्य प्रदेश के भीमबेटका, आदमगढ़, लाख जुआर, कर्नाटक में कुपगुल्लू आदि। 


ये शैलाश्रय ऊपरी पुरापाषाण और मध्यपाषाण काल के लोगों के प्रमाण हैं और इसमें विभिन्न प्रकार के विषयों, मुख्य रूप से जानवरों या लोगों दोनों को दर्शाते हुए शैल चित्र शामिल हैं। इन शैल चित्रों का वितरण बहुत विस्त्तृत है।


विंध्य पर्वत के लेखहिया में शैलाश्रय से 17 मानव कंकाल पाए गए थे।


नवपाषाणिक स्थल संगनकल्लू


यह कर्नाटक के बेल्लारी जिले में स्थित है। यहाँ के  लोग प्रारंभिक कृषक थे, जो छोटे बाजरा और दालों की खेती करते थे। वे भेड़, मवेशी रखते थे और गोबर (राख के टीले) डालने के लिए उनके पास अलग-अलग क्षेत्र थे। यह अनुमान लगाया जाता है कि ये राख के टीले गाय के गोबर को संभवतः एक अनुष्ठान के तरीके से जलाने के लिए थे।


गेरूए रंग के मिट्टी के बरतन हस्तिनापुर में पाए गए हैं, जो इंडो-गंगा मैदान की एक कांस्य युग की संस्कृति है, इसका समय 2000-1500 ईं.पू. की है, जो पूर्वी पंजान से राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक फैली हुई है।


बुर्जहोम (कश्मीर) में कुत्तों को उनके मालिकों के साथ दफनाया जाता था। बुर्जहोम कश्मीर में खोजा जाने वाला पहला नवपाषाण स्थल था।


पुरापाषाणिक लोग खाद्य संग्राहक और शिकारी थे। मध्य पाषाणिक लोग शिकारी और चरवाहे थे। नवपाषाणिक लोग खाद्य उत्पादक थे। और ताम्रपाषाणिक लोग (कांस्य युगीन लोग) ग्रामीण जीवन व्यतीत करते थे।


हड़प्पा सभ्यता को सिंधु घाटी सभ्यता का ही एक भाग है। यह सभ्यता 2500 ई.पू. दक्षिण एशिया के पश्चिमी भाग में फैली हुई थी। इसकी खोज 1921 में हुई, दयाराम साहनी के द्वारा। इस सभ्यता के लोग कांस्य के उपयोग और निर्माण से अच्छी तरह से परिचित थे। ये लोग मछली सहित विभिन्न प्रकार के पौधे और पशु उत्पाद खाते थे। हड़प्पा स्थलों पर पाए जाने वाले अनाज में गेहूं, जौ, मसूर, चना और तिल शामिल है। बाजरा गुजरात के स्थलों से प्राप्त होता है। चावल के अवशेष अपेक्षाकृत दुर्लभ हैं।


बस्ती को दो भागों में बांटा गया है, एक छोटा लेकि ऊँचा और दूसरा बहुत बड़ा लेकिन निचला। पुरातत्वविद इन्हें क्रमशः दुर्ग और निचला शहर कहते हैं। दुर्ग की ऊंचाई इस तथ्य के कारण है कि इमारतों का निर्माण मिट्टी की ईंट के चबूतरे पर किया गया था। यह दीवार से घिरा हुआ था, जिसका अर्थ था कि यह निचले शहर से शारीरिक रूप से अलग था। निचला शहर भी चाहदीवारी से घिरा था। कई इमारतों को चबूतरे पर बनाया गया था, जो नींव के रूप में काम करती थी।


भारत में चांदी का सबसे पहला प्रमाण हड़प्पा संस्कृति में पाया जाता है। चांदी की मुहरों पर एक में गेंडा आकृति है।


हड़प्पा की मुहरों पर कई जानवरों को चित्रित किया गया है- इनमें चार घास के मैदान वाले जंगली जानवर है- बाघ, गैंडा, हाथी, भैंस। अन्य चार पालतू जानवर हैं- बकरी, जेबू सितारुण पशु (लघु श्रंग नस्ल) बैल तथा एकश्रंगी बैल।      


टेराकोटा का हल हड़प्पा स्थल बनावली से प्राप्त हुआ है।


उत्तर हड़प्पा के मिट्टी के बर्तनों और चित्रित धूसर बर्तन के सह-अस्तित्व का खुलासा जम्मूकश्मीर के मांडा और हरियाणा के दधेरी स्थानों से हुआ है।

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