हड़प्पा सभ्यता : धार्मिक जीवन
नमस्कार दोस्तों! आज इस ब्लॉग में हम चर्चा करेंगे हड़प्पा सभ्यता के धार्मिक जीवन और उनकी विशेषताओं की।
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प्रत्येक धर्म के दो पक्ष होते हैं- क्रिया पक्ष और सिद्धांत पक्ष। धर्म के क्रिया पक्ष में धार्मिक कर्मकांड, अनुष्ठान तथा धार्मिक विश्वास आते हैं। सिद्धांत पक्ष में उस धर्म के दार्शनिक मान्यताओं का समावेश होता है।पुरातात्विक साक्ष्य धर्म के केवल क्रिया पक्ष पर प्रकाश डालते हैं, उनसे सैद्धांतिक पक्ष पर कोई प्रकाश नहीं पड़ता है। चूंकि हड़प्पन लिपि को अभी तक पढ़ने में सफलता नहीं मिली हैं इसलिए हमें हड़प्पन लोगों के धार्मिक जीवन के केवल क्रिया पक्ष के विषय में ही जानकारी प्राप्त होती है। हड़प्पावासी एकेश्वरवादी थे जिसके दो रूप थे- परम पुरुष और परम नारी।
मातृ देवी की पूजा:
इस सभ्यता में सबसे अधिक नारी की मिट्टी की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं इसलिए माना जाता है कि हड़प्पा काल में मातृशक्ति की पूजा सर्वप्रधान थी। हड़प्पा से एक ऐसी मुहर प्राप्त हुई है जिसमें स्त्री के गर्भ से निकलता हुआ पौधा दिखाया गया है। यह संभवत: पृथ्वी देवी की प्रतिमा है और इससे यह स्पष्ट होता है कि वे पृथ्वी को उर्वरता की देवी समझते थे और उसकी पूजा करते थे।
पशुपति पूजा:
हड़प्पा सभ्यता में पशुपति पूजा भी प्रचलित थी। मोहनजोदड़ो से एक ऐसा मुहर प्राप्त हुआ जिसमें एक सींग वाले त्रिमुखी पुरुष को एक सिंहासन पर योग मुद्रा में दिखाया गया है और उसके दोनों तरफ हाथी, बाघ, गैंडा और भैंसा खड़े हुए दिखाए गए हैं। कुछ इतिहासकार इसे शिव का आदिरूप मानते हैं परंतु एच.सी.रायचौधरी इससे सहमत नहीं है।
लिंग एवं योनि पूजा:
योग:
इस सभ्यता से कुछ ऐसी मूर्तियां मिली हैं जिससे अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पावासी योग विद्या से परिचित थे।
मूर्ति पूजा:
हड़प्पा सभ्यता में मूर्ति पूजा प्रचलित थी परंतु कहीं से भी मंदिर के साक्ष्य नहीं मिले हैं।
इसके अलावा संभवत: हड़प्पावासी नाग पूजा, वृक्ष पूजा,जल पूजा,अग्नि पूजा,सूर्य पूजा तथा भूत- प्रेत में भी विश्वास रखते थे।
अंत्येष्टि संस्कार:
सिंधु सभ्यता में अंत्येष्टि संस्कार की तीन विधियां प्रचलित थी- पूर्ण समाधीकरण, आंशिक समाधीकरण एवं दाह संस्कार।