वैदिक संस्कृति: राजनीतिक जीवन
नमस्कार दोस्तों! इस ब्लॉग में हम चर्चा करेंगे पूर्व वैदिक काल एवं उत्तर वैदिक काल के राजनीतिक जीवन एवं उसके प्रमुख संस्थाओं की।
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राजनीतिक संगठन
पूर्व वैदिककालीन आर्यों की सर्वोच्च राजनीतिक इकाई जन थी । जन, विश में विभाजित था और विश, ग्राम में तथा ग्राम, कुल में विभाजित था। जनों का प्रमुख जनस्यगोपा या जन प्रमुख कहलाता था। इसका पद वंशानुगत हो चुका था फिर भी राजन के हाथ में असीमित अधिकार नहीं था। राजन पर नियंत्रण का कार्य सभा और समिति नामक संस्थाएं करती थी ।हालांकि पूर्व वैदिक काल की सबसे प्राचीन संस्था विदथ थी। ऋग्वेद में बलि शब्द का उल्लेख मिलता है जो प्रजा द्वारा राजा को स्वेच्छा से दिए जाने वाला उपहार था। ऋग्वेद में जन शब्द का 275 बार, विश शब्द का 170 बार, समिति का 9 बार एवं सभा का 8 बार उल्लेख है।
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उत्तर वैदिक कालीन राजनीतिक दशा में सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन था छोटे-छोटे जन मिलकर जनपद में परिवर्तित हो गए। पूर्व वैदिक काल की सबसे प्राचीन संस्था विदथ उत्तर वैदिक काल में समाप्त हो गई । राजा के उत्पत्ति का सिद्धांत सर्वप्रथम ऐतरेय ब्राह्मण में मिलता है। धीरे-धीरे राजा के अधिकारों में वृद्धि होने लगी । अथर्ववेद में राजा परीक्षित का उल्लेख है जो मृत्यु लोक का देवता था । उपनिषदों में कई राजाओं के नामों का उल्लेख है।
राजा के पदाधिकारी
पूर्व वैदिक काल में राजा के तीन प्रमुख अधिकारी थे- पुरोहित, सेनानी और ग्रामीण। उत्तर वैदिक काल में इनकी संख्या बढ़कर 12 हो गई जिसमें से प्रमुख थे- सेनानी, पुरोहित, युवराज, सूत, ग्रामणी, भागदुध आदि।
राज्याभिषेक
राज्याभिषेक पूर्व वैदिक काल में ही आरंभ हो गया था परंतु उत्तर वैदिक काल तक आते-आते यह एक विधिवत रूप ले चुका था। इस अवसर पर राजसूय यज्ञ का आयोजन होता था। जिसका विस्तृत वर्णन शतपथ ब्राह्मण में मिलता है। इस यज्ञ में 17 प्रकार के जलों से राजा का अभिषेक किया जाता था। अब अलग-अलग दिशाओं के राजाओं के नाम अलग-अलग होने लगे। जैसे-उत्तर के शासक को विराट, दक्षिण के शासक को भोज,पश्चिम के शासक को स्वराट,पूर्व के शासक को सम्राट,मध्य देश के शासक को राजा कहा जाता था और जो इन सभी को जीत ले उसे एकराट कहा जाता था।