वैदिक संस्कृति: वैदिक साहित्य
नमस्कार दोस्तों! इस ब्लॉग में हम चर्चा करेंगे वैदिक साहित्य एवं उनकी विशेषताओं की।
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वैदिक साहित्य से हमारा तात्पर्य चारों वेद उनसे संबंधित ब्राह्मण ग्रंथ, आरण्यक ग्रंथ एवं उपनिषदों से है। वैदिक साहित्य को श्रुति नाम से भी जाना जाता है। श्रुति का अर्थ है सुनकर लिखा हुआ साहित्य। माना जाता है कि यह साहित्य मनुष्य द्वारा नहीं लिखा गया बल्कि इन्हें ईश्वर ने ऋषियों को आत्मज्ञान देकर उनकी सृष्टि की तथा ऋषियों द्वारा यह कई पीढ़ियों तक अन्य ऋषियों को मिलता रहा।इसी कारण वैदिक साहित्य को अपौरुषेय और नित्य कहा जाता है। वेदों की कुल संख्या चार है जो क्रमशः ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद। इसमें से प्रथम तीन वेदों को वेदत्रयी कहा जाता है। इन चारों वेदों में सबसे प्राचीन ऋग्वेद एवं सबसे नवीन अथर्ववेद है।वेदों को सरल ढंग से समझने के लिए ब्राह्मण ग्रंथों की रचना की गई। प्रत्येक वेद के अपने-अपने ब्राह्मण ग्रंथ, आरण्यक एवं उपनिषद हैं। उपनिषद वेदों के अंतिम भाग हैं इसलिए इन्हें वेदांत के नाम से भी जाना जाता है इनमें मुख्यतः आत्मा एवं ब्रह्म के विषय पर चर्चा की गई है।
ऋग्वेद
ऋग्वेद आर्यों का सबसे प्राचीन ग्रंथ है ऋग्वेद की रचना संभवत: सप्त-सैंधव प्रदेश अर्थात पंजाब में हुई। इसमें कुल 10 मंडल तथा 1028 या 1017 सूक्त हैं।इसके मन्त्रों ऋचा को कहा जाता है। वेदों का संकलन महर्षि कृष्ण द्वैपायन ने किया इसलिए इनका नाम वेदव्यास भी है। ऋग्वेद के ज्यादातर मंत्र देव आह्वान से संबंधित है।ऋग्वेद के मंत्रों का उच्चारण करने वाले को होतृ या होता कहा जाता कहा जाता था। ऋग्वेद के दसवें मंडल में पहली बार वर्ण व्यवस्था का उल्लेख मिलता है। जिसमें कहा गया है कि एक विराट पुरुष के विभिन्न अंगों से चारों वर्णों ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवम् शूद्र की उत्पत्ति हुई। ऋग्वेद के दो-दो ब्राह्मण ग्रंथ, आरण्यक ग्रंथ तथा उपनिषद ग्रंथ हैं। इनका नाम ऐतरेय और कौषीतकी है।
सामवेद
साम का अर्थ है- गायन। इसके अधिकांश मंत्र ऋग्वेद से लिए गए हैं,इसलिए इसे ऋग्वेद से अभिन्न नहीं माना जाता है। सामवेद के मंत्रों का गायन करने वाला उदगाता कहा जाता है। सप्त स्वरों सा...रे...गा...मा का उल्लेख इसी वेद में मिलता है। प्रसिद्ध छांदोग्य उपनिषद सामवेद से ही संबंधित है। यह उपनिषदों में सबसे प्राचीन माना जाता है। इसी में सर्वप्रथम देवकी पुत्र कृष्ण का उल्लेख है, इसी में प्रथम बार तीन आश्रमों का भी उल्लेख मिलता है।
यजुर्वेद
यजुर्वेद गद्य एवं पद दोनों में रचित है। इसकी दो शाखाएं शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद। प्रसिद्ध शतपथ ब्राह्मण यजुर्वेद से ही संबंधित है। यह ब्राह्मण ग्रंथों में सबसे प्राचीन एवं बड़ा माना जाता है।इसके लेखक महर्षि याज्ञवल्क्य हैं। शतपथ ब्राह्मण में जल प्लावन कथा, पुनर्जन्म का सिद्धांत आदि का वर्णन है। प्रसिद्ध कठोपनिषद तथा वृहदारन्यक उपनिषद इसी वेद से संबंधित हैं।वृहदारन्यक उपनिषद में याज्ञवल्क्य- गार्गी का प्रसिद्ध संवाद तथा कठोप उपनिषद में यम-नचिकेता का प्रसिद्ध संवाद वर्णित है।
अथर्ववेद
अथर्वा ऋषि के नाम पर इस वेद का नाम अथर्ववेद पड़ा। यह सबसे लोकप्रिय वेद है।इसे ब्रह्म वेद या श्रेष्ठ वेद भी कहा जाता है।अथर्ववेद के मंत्रों का उच्चारण करने वाले पुरोहित को ब्रह्मा कहा जाता है। इस वेद में वशीकरण, जादू-टोना, भूत-प्रेत, विभिन्न प्रकार के औषधियों आदि का वर्णन है। सत्यमेव जयते मुंडकोपनिषद से लिया गया है। मुंडकोपनिषद का संबंध अथर्ववेद से ही है।