वैदिक संस्कृति: सूत्रकाल (600BC से 300BC)
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वैदिक साहित्य को अक्षुण्ण बनाए रखने तथा संक्षिप्त करने के लिए सूत्र साहित्य की रचना की गई। सूत्र कालीन सभ्यता की जानकारी हमें सूत्र साहित्य से प्राप्त होती है। इसका वर्णन वैदिकोत्तर साहित्य नामक शीर्षक के अंतर्गत किया जा चुका है।
सूत्र कल तक आते-आते वर्ण जातियों में परिवर्तित हो गए थे । जातियों का आधार कर्म न होकर जन्म हो गया। अंतरवर्ण विवाह एवं खान-पान पर प्रतिबंध लगा दिया गया।प्रथम तीन वर्णों ब्राह्मण, क्षत्रिय, और वैश्य को एक साथ द्विज कहा गया और इन्हें शूद्रों से अलग माना जाने लगा। पाणिनी ने दो प्रकार के शूद्रों का उल्लेख किया है निर्वासित (नगर के बाहर रहने वाले) तथा अनिर्वासित (नगर की सीमा में रहने वाले) इसमें पहले प्रकार के शूद्र अस्पृश्य माने जाते थे।सूत्रकाल में अस्पृश्यता का उदय हुआ। चांडाल अस्पृश्य माने जाने लगे जो नगर के बाहर निवास करते थे। इनकी उत्पत्ति प्रतिलोम विवाह (ब्राह्मण कन्या और शूद्र पिता) के फलस्वरूप मानी गई। इसी प्रकार अन्य जातियों का उदय भी अनुलोम एवं प्रतिलोम विवाहों के फलस्वरुप हुआ। स्त्रियों की दशा सूत्रकाल में और ज्यादा खराब हो गई।
वर्ण व्यवस्था के साथ-साथ सूत्रकाल में चारों प्रकार के आश्रमों तथा पुरुषार्थों का विधिवत वर्णन मिलने लगता है। गृह्य सूत्र में 16 प्रकार के संस्कार तथा आठ प्रकार के विवाहों का उल्लेख है।
षोडश संस्कार: 16 संस्कार
संस्कार का अर्थ है - परिष्कार अथवा शुद्धिकरण। इसके माध्यम से व्यक्ति को समाज के एक योग्य नागरिक के रूप में तैयार किया जाता था। यह संस्कार जन्म पूर्व से लेकर मृत्युपर्यंत चलते रहते थे। ये 16 संस्कार निम्नलिखित हैं-
1- गर्भाधान:
जब जीव माँ के उदर में प्रवेश करता है तब यह संस्कार आयोजित किया जाता है।
2- पुंसवन
गर्भ के तीसरे महीने में यह संस्कार पुत्र प्राप्ति की कामना हेतु संपन्न कराया जाता है।
3- सीमंतोन्नयन
4- जातकर्म
बालक के जन्म के समय को जातकर्म कहा जाता है।
5- नामकरण
जन्म के 10वें या 12वें दिन नामकरण किया जाता है।
6- निष्क्रमण
जब बालक पहली बार घर से बाहर निकलता है तब यह संस्कार संपन्न होता है।
7- अन्नप्राशन
जब बालक को पहली बार अन्न खिलाया जाता है तब यह संस्कार संपन्न होता है।
8- चूड़ाकर्म
जब बालक का पहली बार बाल बनाया जाता है तब यह संस्कार संपन्न होता है।
9- कर्णवेधन
जन्म के तीसरे या पांचवें वर्ष बालक का कर्ण छेदा जाता था तब यह संस्कार संपन्न होता था।
10- विद्यारंभ
यह संस्कार जन्म के 5वें वर्ष सम्पन्न होता था।
11- उपनयन संस्कार
उपनयन संस्कार के बाद बालक द्विज कहलाता था। द्विज का अर्थ है- पुनर्जन्म। इस संस्कार में गुरु आश्रम आने से पहले यज्ञोपवीत धारण कराया जाता था। उपनयन संस्कार मुख्यतः शिक्षा से संबंधित था।
12-वेदारंभ
गुरु आश्रम में वेद पाठ कराने के समय यह संस्कार संपन्न होता था।
13- केशांत अथवा गोदान
इस संस्कार में विद्यार्थी की प्रथम बार दाढ़ी-मूछ बनाई जाती थी।
14- समावर्तन
यह संस्कार आधुनिक समय में विश्वविद्यालय में होने वाले दीक्षांत समारोह के जैसा था।इसमें विद्यार्थी शिक्षा समाप्त करने के बाद घर लौटने के पूर्व यह संस्कार संपन्न करता था।
15- विवाह
इस संस्कार के बाद स्नातक गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करता था।
16- अंत्येष्टि:
यह संस्कार मृत्यु के बाद संपादित किया जाता था.