वैदिक संस्कृति: सूत्रकाल (भाग 2)
सूत्रकाल में विवाह को एक पवित्र संस्कार माना जाता था। गृह्य सूत्र में आठ प्रकार के विवाहों का वर्णन मिलता है। हिन्दू धर्म में इन्हें आठ विवाह" या "अष्टविवाह" कहा जाता है। ये निम्नलिखित हैं -
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अष्टविवाह
1. ब्रह्म विवाह
यह विवाह सबसे उच्च और पवित्र माना जाता है। इसमें लड़का और लड़की दोनों के माता-पिता आपस में सहमति से विवाह तय करते हैं। इसे आधुनिक विवाह का रूप भी माना जाता है, यह विवाह सबसे अधिक प्रचलन में था।
2. दैव विवाह:
इसमें लड़की का पिता किसी यज्ञ या धार्मिक अनुष्ठान का आयोजन करता था, और जो ब्राह्मण यज्ञ का संपादन करता था उसे अपनी कन्या का दान देता था।
3. आर्ष विवाह:
इसमें कन्या का पिता धर्म कार्य के लिए वर से एक गाय या एक बैल या इनकी एक जोड़ी लेकर वर के साथ कन्या का विवाह कर देता था।
4. प्रजापत्य विवाह:
इसमें लड़का और लड़की आपस में सहमति से विवाह करते हैं और उनके माता-पिता भी सहमत होते हैं।
5. गंधर्व विवाह:
इसमें लड़का और लड़की आपस में प्रेम विवाह करते हैं और उनके माता-पिता की सहमति नहीं होती। स्वयंवर गंधर्व विवाह का एक रूप था।
6. असुर विवाह:
इसमें लड़का लड़की को खरीदता है या उसके बदले में कुछ देता है। इसलिए इसे विक्रय विवाह भी कहा जाता था।
7. राक्षस विवाह:
इसमें लड़का लड़की का अपहरण कर लेता है और फिर विवाह करता है। क्षत्रियों में इस विवाह प्रकार के विवाह को मान्यता प्राप्त था।
8. पिशाच विवाह:
जबरदस्ती और बलात्कार आदि करके किया गया विवाह। यह विवाह का सबसे निकृष्ट रूप था।
इनमें से ब्रह्म, दैव, अर्ष, और प्रजापत्य विवाह को उचित और पवित्र माना जाता है, जबकि गंधर्व, असुर, राक्षस, और पिशाच विवाह को अनुचित और अपवित्र माना जाता है।
पुरुषार्थ
पुरुषार्थ जीवन के उद्देश्य को व्याख्याित करते हैं इनकी संख्या चार है- धर्म, अर्थ,काम तथा मोक्ष । इन्हें सम्मिलित रूप से चतुर्वर्ग कहा गया है जबकि धर्म, अर्थ व काम को त्रिवर्ग कहा जाता था।
आर्थिक जीवन:
सूत्र कल से ही सिक्कों का प्रचलन प्रारंभ हो गया।सबसे प्राचीन सिक्कों को आहत सिक्के (पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व)कहा जाता है यह मुख्यत: चांदी के बने होते थे।इन्हें आहत कहने का मुख्य कारण यह है कि इन पर सूर्य ,चंद्र,पीपल आदि के निशान बने होते थे।