ब्रिटिश शासन में संवैधानिक विकास
1765 में बंगाल की दीवानी ब्रिटिश को प्राप्त हुई। 1776 ई. में कंपनी पर यह नियंत्रण लगाया गया कि वह 4 लाख पौंड वार्षिक ब्रिटिश सरकार को दे।
1773 का रेग्युलेटिंग एक्ट
सरकार द्वारा कंपनी को आर्थिक-प्रशासनिक एवं सैन्य कार्यों पर संसद के आंशिक नियंत्रण के लिए यह एक्ट लाया गया। इसमें यह प्रावधान था कि कोर्ट ऑफ डायरेक्टर अपने कुछ महत्वपूर्ण कागजात संसद के सामने रखेगा। कंपनी के ढांचे में परिवर्तन लाया गया। कंपनी के डायरेक्टर की संख्या 24 कर दी गई।
बंगाल का गवर्नर अब गवर्नर जनरल कहलाने लगा। उसकी सहायता के लिए 4 सदस्यों की परिषद स्थापित की गई। बंगाल का प्रथम गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स था। प्रथम चार पार्षद- फ्रांसिस, क्लैवरिंग एवं मॉनसन थे। इस एक्ट के अनुसार 1774 में कलकत्ता में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई।
1781 का अधिनियम
इस अधिनियम का एकमात्र उद्देश्य ब्रिटिश अधिकारियों को प्रशासनिक कार्यों के लिए सुप्रीम कोर्ट की अधिकारिता से बाहर रखना था।
1784 का पिट्स इंडिया एक्ट
इस अधिनियम का उद्देश्य कंपनी पर ब्रिटिश क्राउन का नियंत्रण बढ़ाना था। अतः बोर्ड ऑफ कंट्रोल की स्थापना की गई। इसमें 6 सदस्य होते थे। चार सदस्य ब्रिटिश प्रिवी कौंसिल से चुने जाते थे। इससे कंपनी पर दोहरा नियंत्रण स्थापित हुआ। गवर्नर जनरल को बंबई और मद्रास के सैनिक व प्रशासनिक गतिविधियों पर अधीक्षण का अधिकार दिया गया।
1786 का अधिनियम
यह अधिनियम कार्नवालिस को प्रसन्न करने के लिए लाया गया था। कार्नवालिस सेना का सर्वोच्च सेनापति बनना चाहता था। इसके अनुसार गवर्नर जनल कौंसिल के परामर्श को रद्द कर सकता था।
1793 का अधिनियम
इस अधिनियम के द्वारा कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार को 20 वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया। लंदन स्थित ऑफिस का खर्च भारतीय एक्सचेंजर पर लाद दिया गया। यह व्यवस्था 1919 तक चलती रही। गवर्नर जनरल को कौंसिल के अनुसंसा को रद्द करने का अधिकार दिया गया।
यदि बंगाल का गवर्ननर जनरल बंबई एवं मद्रास जाता है तो वहाँ के गवर्नरो के अधिकार गवर्नर जनरल के समानांतर स्वयं ही सीमित हो जाएंगे।
1813 का चार्टर एक्ट
इस चार्टर एक्ट के अनुसार भारत में ब्रिटिश कंपनी का व्यापारिक एकाधिकार समाप्त हो गया। केवल चीन के साथ व्यापार एवं चाय का एकाधिकार पूर्ववत बना रहा।
इस एक्ट के अनुसार शिक्षा के विकास के लिए 1 लाख रुपए वार्षिक दिया जाना निश्चित हुआ।
ईसाई मिशनरियों को लाइसेंस लेकर धर्म का प्रचार करने की अनुमति मिली।
इस एक्ट के अनुसार व्यापारिक गतिविधियों तथा क्षेत्रीय राजस्व दोनों खाते अलग अलग कर दिए गए।
1813 का चार्टर एक्ट
भारत का प्रशासन 20 वर्षों के लिए कंपनी के अधीन छोड़ दिया गया। इस चार्टर के मुताबिक कंपनी का चीन के साथ व्यापार एवं चाय के व्यापार पर भी एकाधिकार समाप्त कर दिया गया।
इस चार्टर के मुताबिक ब्रिटिश नागरिक भूमि खरदीकर बागवानी कृषि कर सकते थे।
बंबई और मद्रास प्रेसीडेंसी को पूर्णतः बंगाल के अधीन कर दिया गया। इस प्रकार एक तरह का प्रशासनिक एकीकरण हुआ।
विधि निर्माण की शक्ति बंबई और मद्रास प्रेसीडेंसी से वापस ले ली गई। अब विधि निर्माण की शक्ति गवर्नर जनरल और उसकी परिषद में निहित कर दी गई।
बंगाल का गवर्नर जनरल अब भारत का गवर्नर जनरल कहलाने लगा। इस आधार पर प्रथम गवर्नर जनरल विलियम बैंटिक बने।
इस चार्टर एक्ट में अनुच्छेद 87 शामिल था। इसके अनुसार किसी भी भारतीय को वर्ण, जन्म, नस्ल के आधार पर पद से वंचित नहीं किया जा सकता था।
इस अधिनियम के द्वारा भारत सरकार को निर्देश दिया गया कि वह दासों की स्थिति में सुधार करने के लिए इस प्रथा का अंत करे। इसी आधार पर लॉर्ड ऐलनबरो के समय 1843 ई. में दास प्रथा का अंत कर दिया।