ब्रिटिश भारत में संवैधानिक विकास
1853 का चार्टर एक्ट
इस एक्ट के अनुसार भारतीय प्रशासन कंपनी के अधीन ही रहने दिया गया। लेकिन इसके लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई थी। कोर्ट ऑफ डायरेक्टर से सिविल सर्वेंट की नियुक्ति का अधिकार वापस ले लिया गया। अब प्रतियोगिता परीक्षा को इस नियुक्ति हेतु आधार बनाया गया।
कंपनी के डायरेक्टर की संख्या 24 से 18 कर दी गई। भारतीय विधियों की जाँच करने के लिए एक विधि आयोग की स्थापना ब्रिटेन में की गई।
पहली बार लेजिस्लेटिव काउंसिल की स्थापना की गई।
बंगाल के लिए एक उपराज्यपाल की स्थापना की गई।
विधि निर्माण के लिए कौंसिल में 6 सदस्य जोड़े जाने थे। जिसमें सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश, एक अन्य न्यायाधीश तथा चारों का एक-एक प्रतिनिधि शामिल था।
1858 का चार्टर एक्ट
इसके तहत कंपनी की विस्तारवादी नीति पर रोक लगा दी गई।
भारत पर प्रशासन का अधिकार ब्रिटिश क्राउन ने अपने हाथ में ले लिया।
भारत सचिव पद का सृजन किया गया। उसकी सहायता के लिए 15 सदस्यीय काउंसिल बनाई गई। इसमें 7 सदस्यों की नियुक्ति कोर्ट ऑफ डायरेक्टर के द्वारा और 8 सदस्यों की नियुक्ति ब्रिटिश क्राउन के द्वारा की जानी थी। जिनमें से 15 सदस्यों में से आधे को 10 वर्ष का अनुभव प्राप्त हो।
बोर्ड ऑफ कंट्रोल का अंत कर दिया गया। इस प्रकार दोहरे नियंत्रण की व्यवस्था समाप्त कर दी गई।
गवर्नर जनरल अब वायसराय कहा जाने लगा। वह क्राउन का प्रत्यक्ष प्रतिनिधि था। प्रतियोगी परीक्षा पर पुनः बल दिया गया। प्रतिवर्ष भारत का लेखा तथा भारत संबंधी रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत करना अनिवार्य बना दिया गया।
1861 का काउंसिल एक्ट
वायसराय को इस बात के लिए अधिकृत किया गया कि वह प्रशासनिक व्यवस्था हेतु विधि बनाए। कैनिंग ने इसकी शुरुआत की।
1892 का काउंसिल एक्ट
इस एक्ट की महत्वपूर्ण बात यह थी कि इसमे पहली बार चुनाव का उल्लेख किया गया था। विधान परिषद की शक्तियों में विस्तार करके उन्हें यह अधिकार प्रदान किया गया कि अब वह वार्षिक बजट पर बहस कर सकते हैं, तथा जनसाधारण से जुड़े प्रश्न पूछ सकते थे।
1909 का मार्ले मिंटो सुधार
मुख्य उद्देश्य मुस्लिम अल्पसंख्यक आबादी को प्रसन्न करना।
उदारवादियों को मजबूती प्रदान करना।
उग्रवादियों की ताकत को तोड़ना।
केंद्रीय विधान परिषद की सदस्य संख्या बढ़ाकर 69 कर दी गई।
विधान मंडल में बजट की विवेचना हेतु विस्तारपूर्वक नियम बनाए गए थे। उन्हें मताधिकार तो प्रदान नहीं किया गया परंतु, स्थानीय निकायों में वित्त मांगने का अधिकार दिया गया।
1919 का भारत शासन अधिनियम
भारत के लिए एक नए पदाधिकारी उच्चायुक्त की नियुक्ति की गई।
वायसराय की कार्यकारिणी के 8 सदस्यों में 3 भारतीय होने थे।
पहली बार भारत में द्वि-सदनात्मक केंद्रीय व्यवस्थापिका स्थापित की गई।
भारत शासन अधिनियम 1935
संघ में द्वैध शासन प्रणाली को अपनाया गया।
प्रांतों में द्वैध शासन प्रणाली का अंत कर दिया गया।
बर्मा को भारत से पृथक कर दिया गया।
बंगाल, मद्रास, बंबई, संयुक्त प्रांत तथा बिहार में द्विसदनीय विधायिका का प्रावधान किया गया।
नेहरू ने इस अधिनियम की तुलना ऐसे ऑटोमोबाइल से की जिसमे ब्रेक तो था, परंतु एक्सीलीटर नहीं था।
मो. अली जिन्ना ने इसे मूलतः सड़ा हुआ बताया।
सांप्रदायिक प्रतिननिधित्व का विस्तार किया गया।
रिजर्व बैंक की स्थापना की गई।
संघीय न्यायालय का प्रावधान।
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