मौर्य प्रशासन नोट्स
मौर्य प्रशासन की जानकारी के मुख्य स्रोत कौटिल्य का अर्थशास्त्र, मेगस्थनीज की इंडिका, रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख एवं अशोक के अभिलेख हैं।
मौर्य प्रशासन का भारतीय प्रशासनिक इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। यह भारत की प्रथम केंद्रीकृत प्रशासन प्रणाली का उल्लेख है। प्रशासन का केंद्र बिंदु राजा होता था। वह कार्यपालिका, व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका का प्रमुख होता था।
अर्थशास्त्र में 18 तीर्थों एवं 26 अध्यक्षों का उल्लेख मिलता है। यह अधिकारियों का एक समूह था, जिसमें से शासन-प्रशासन के उच्च पदों पर नियुक्ति की जाती थी। इसके अलावा अशोक के अभिलेखों एवं अन्य स्रोतों से अनेक अधिकारियों के नाम एवं कार्यों का पता चलता है।
मौर्यकालीन प्रमुख अधिकारी
2: प्रदेष्टा - यह फौजदारी (कंटकशोधन)न्यायालय का न्यायाधीश होता था।
3: व्यवहारिक - यह दीवानी (धर्मस्थीय) न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश होता था।
4: पन्याध्यक्ष- यह वाणिज्य विभाग का अध्यक्ष था।
5: लक्षणाध्यक्ष- छापेखाने का अध्यक्ष।
6: सीताध्यक्ष- यह राजकीय कृषि विभाग का अध्यक्ष था।
7: प्रादेशिक - प्रदेश का प्रमुख अधिकारी था।
8: प्रतिवेदक- जनता की बात राजा तक पहुंचने वाला अधिकारी था इसका उल्लेख 6वें में शिलालेख में मिलता है।
(getCard) #type=(post) #title=(You might Like)
संक्षेप में प्रांतीय प्रशासन और उसके विभाजन को निम्न प्रकार आसानी से समझा जा सकता है -
केंद्र(राजा)-
प्रांत(कुमार या आर्यपुत्र)-
मण्डल(प्रादेशिक)
आहार या विषय या जिला (विषयपति या स्थानिक)-
स्थानीय(800ग्रामों का समूह)-
द्रोणमुख(400 ग्रामों का समूह)-
खार्वतिक(200 ग्रामों का समूह)
संग्रहण(10 ग्रामों का समूह)-
ग्राम (प्रमुख अधिकारी ग्रामणी)