अंग्रेजों की भू-राजस्व नीतियां

Gyanalay
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अंग्रेजों की भू-राजस्व नीतियां


स्थायी बन्दोबस्त- 


कार्नवालिस ने स्थायी बन्दोबस्त लागू किया। इसे जमींदारी व्यवस्था अथवा इस्तमरारी बंदोबस्त के नाम से जाना जाता है। स्थाई बंदोबस्त 1793 ई. में स्थाई कर दी गई।

कार्नवालिस जो कि स्वयं भी इंग्लैंड का एक जमींदार था, वह जमींदार को भूमि के स्वामी के रूप में स्वीकार करता था। जमींदारों एवं मध्यस्थों को भूमि का स्वामी बना दिया गया।

अब जमीन की खऱीद-बिक्री हो सकती थी।

भूमि पर रैय्यतों के परंपरागत अधिकार खत्म हो गए। इतना तक कि चारागाह, नदी, जंगल आदि, सार्वजनिक भूमि पर रैय्यतों का परंपरागत अधिकार था, अब जमींदारों के अंतर्गत चले गए। भू-राजस्व में सरकार का हिस्सा 10/11 होता था। 

1793 ई. में रेगुलेशन के तहत एक सूर्यास्त कानून पारित किया गया। इस कानून के अनुसार अगर निश्चित तिथि की शाम तक जमींदार भू-राजस्व चुकता नहीं करता है तो संबंधित जमींदार की जमींदारी नीलाम कर दी जाती थी। यह जमींदारी व्यवस्था बंगाल, बिहार, उड़ीसा, तथा उत्तर प्रदेश के बनारस डिवीजन एवं कर्नाटक में लागू की गई।

यह कुल ब्रिटिश भारत के 19 प्रतिशत भाग में लागू थी।


रैय्यतवाड़ी व्यवस्था- 


1792 ई. में रैय्यतवाड़ी पद्धति सर्वप्रथम बारा महल जिले में कर्नल रीड द्वारा लागू की गई। इसमे लगान समझौता जमींदारों से न करके वास्तविक किसानों से किया गया जो भूमि के स्वामी थे। आगे  मुनरो ने इसे अपना लिया।

प्रत्येक पंजीकृत रैय्यत (किसान) को भू-स्वामी मान लिया गया।

इन्हें जमीन की खरीद-बिक्री का अधिकार दिया गया।

भू-राजस्व की राशि का निर्धारण अस्थाई रूप से 10 से 40 वर्षों के मध्य किया गया।

भू-राजस्व की अधिकतम राशि निश्चित की गई। उपजाऊ भूमि पर कुल उत्पादन 3/5 और कम उपजाऊ भूमि एवं शुष्क भूमि पर उत्पादन का 50% निर्धारित किया गया।

समस्त बंजर भूमि सरकार के स्वामित्व में दे दी गई।


महालवाड़ी व्यवस्था- 


महालवाड़ी  व्यवस्था इंग्लैंड की औद्योगिक क्रांति में निवेश के लिए अत्यधिक धन की आवश्यकता के मद्देनजर शुरू की गई थी। 1882 ई. में हाल्ट मेकेंजी ने इस व्यवस्था को रेगुलेशन के माध्यम से जन्म दिया।

इस व्यवस्था में भू-राजस्व का निर्धारण गाँव या महाल से किया जाता था। इसमें भू-राजस्व की राशि गाँव या महाल में निवास करने वाले सभी जोतदारों में बाँट दिया जाता था।

इस पद्धति में भू-राजस्व अस्थाई रूप से निर्धारित किया गया था जिसमें समय-समय पर वृद्धि की जा सकती थी। इस व्यवस्था को 1822 ई. के रेगुलेशन द्वारा कानूनी रूप दिया गया। जहां जमींदार लगान एकत्र किया करते थे, वहॉँ लगान भूमि किराए का 30 प्रतिशत रखा गया, किंतु उन क्षेत्रों में जहाँ लगान भूमि ग्राम समुदाय की सम्मिलित भूमि थी, वहाँ इसे बढ़ाकर कुल उपज का 50 प्रतिशत तक कर दिया।

भू-राजस्व के सुरक्षार्थ इस व्यवस्था को मुख्यतः गंगा घाटी, मध्य भारत, उत्तर पश्चिमी प्रांत तथा पंजाब में लागू की गई। यह व्य्स्था कुल भू-भाग के 30 प्रतिशत भाग पर लागू थी।

इस प्रकार-
स्थायी बंदोबस्त-        19 प्रतिशत भूभाग
रैयतवाड़ी बंदोबस्त-      51 प्रतिशत भूभाग
महालवाड़ी बंदोबस्त-     30 प्रतिशत भूभाग


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