भूगोल - भूकम्पीय तरंगें
भूकम्पीय तरंगें
भूकम्प के उद्गम केन्द्र से दो प्रकार की भूकम्प तरंगें उत्पन्न होती हैं, जिन्हें क्रमशः प्राथमिक तरंगें (P-WAVES) और द्वितीयक तरंगें (S-WAVES) कहते हैं।
प्राथमिक तरंगें
सबसे तीव्र गति से चलती हैं (प्रति सेकेंड 8 किलोमीटर)। ये तरंगें पृथ्वी के प्रत्येक भाग में यात्रा करती हैं। इन तरंगों को अनुदैर्घ्य तरंगें भी कहते हैं।
द्वितीयक तरंगें
ये प्राथमिक तंरंगों के बाद प्रकट होती हैं। इनकी गति प्राथमिक तरंगों की अपेक्षा कम होती है। इन तरंगों को अनुप्रस्थ एवं विंध्वसंक तरंग भी कहते हैं। द्वितीयक तरंगें तरल पदार्थ से होकर नहीं गुजर पाती हैं, यही कारण है कि ये तरंगें सागरीय भागों में पहुंचने पर लुप्त हो जाती हैं।
धरातलीय तरंगें
उपरोक्त दोनों प्रकार की तरंगों के भूतल पर पहुँचने के बाद एक तीसरे प्रकार की तरंग उत्पन्न होती है, जिसे धरातलीय तरंगें (L-WAVES) कहते हैं। इनकी गति अन्य दो तरंगों की अपेक्षा कम होती है। ये तरंगे जल से भी होकर गुजरती हैं जिसके कारण ये सर्वाधिक विनाशकारी होती हैं। P और S तरंगों की अपेक्षा धरातलीय तरंगें अधिक लम्बा मार्ग तय करती हैं। इन्हें लम्बी तरंगें भी कहा जाता है। अधिक गहराई पर धरातलीय तरंगें लुप्त हो जाती हैं।
भूकम्पीय तरंगों का संचरण
भूकम्पीय तरंगों के संचरण से शैलों में कम्पन पैदा होता है। प्राथमिक तरंगों की दिशा कंपन की दिशा से समानान्तर होती है। द्वितीयक तरंगें, तरंगों की दिशा के समकोण पर कंपन पैदा करती हैं।
भूकम्प की तीव्रता के मापक
भूकम्प की वास्तविक तीव्रता को निश्चित कर पाना अत्यंत कठिन है क्योंकि यह भूकम्प तरंगों के कोणांक, त्वरण, आवृत्ति एवं अन्य कई गणितीय बातों पर आधारित होती है। इस दिशा में मरकेली नामक इटैलियन वैज्ञानिक ने स्थिर मापक का आविष्कार किया, जिसे मरकेली स्केल कहते हैं। 1935 में सी.ई. रिक्टर ने भूकम्प की तीव्रता मापने वाली रिक्टर स्केल पर लघुगणकीय लॉगर्थियम मापक्रम है। इसके फलस्वरूप परिणाम मात्रक में 1 की वृद्धि आयाम के लिए 10 के गुणक को निरूपित करती है। भूकंप के परिणाम भूकंप तरंगों के आयाम और ऊर्जा की माप होती है।
भूकंपों का वितरण
विश्व में भूकंप के वितरण का संबंध भूपटल के कमजोर तथा व्यवस्थित भागों से हैं। भूकंप के ऐसे क्षेत्र प्रायः विवर्तनिकी घटनाओं, यथा भ्रंशों के सहारे वाले क्षेत्रों से संबंधित होते हैं।
प्रशांत महासागरीय तटीय पेटी- विश्व का सबसे विस्तृत भूकंप क्षेत्र- चिली, कैलिफोर्निया, अलास्का, जापान, फिलीपींस एवं न्यूजीलैंड।
मध्य महाद्वीपीय पेटी- यह यूरेशिया महाद्वीप के बीच नवीन वलित पर्वतों के सहारे पूर्व से पश्चिम की ओर फैली हुई है। पिनेरीज, आल्प्स, काकेसस, और हिमालय, म्यामांर की पहाड़ियां, पूर्वी द्वीप समूह की श्रेणियां इसी मेखला में आती है।
मध्य अटलांटिक पेटी- यह भूकंपीय पेटी मध्य अटलांटिक कटक के सहारे स्थित है। यहॉं पर भूकंप में प्लेटों के आसपास के रूपांतरण भ्रंश के निर्माण एवं दरारी ज्वालामुखी उद्गार के कारण आते हैं। इस पेटी के सर्वाधिक भूकंप भूमध्य रेखा के पास आते हैं।
भारत के भूकंप क्षेत्र
जोन-5 – कश्मीर घाटी, कुल्लू, कांगड़ा, उत्तराखंड, पूर्वोतर भारत, पूर्वी बिहार, अंडमान निकोबार, कच्छ।
जोन-4 शेष हिमालय तथा महान मैदान का उत्तरी भाग।
जोन-3 महान मैदान का दक्षिणी भाग, नर्मदा, ताप्ती, गोदावरी, पश्चिमी घाट का क्षेत्र।
जोन- 2 प्रायद्वीपीय भारत का शेष भाग।
अधिकेंद्र
भूतल पर स्थित वह बिंदु जो भूकंप केंद्र के ठीक ऊपर स्थित हो। भूकम्पीय लहरों का सर्वप्रथम प्रभाव यही होता है। भूकम्पीय लहरें अधिकेंद्र पर पहुँचकर यहाँ से चारों ओर फैलने लगती हैं। लहरों की सर्वाधिक तीव्र गति यहीं पर होती है परिणामस्वरूप सबसे ज्यादा नुकसान भी यहीं पर होता है।