(toc) #title=(Table of Content)
कौन था चंद्रगुप्त मौर्य
(322 ईसा पूर्व से 298 ईसा पूर्व)
मौर्य साम्राज्य का संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य था। इसके जन्म और जाति के बारे में विद्वानों में मतभेद है।
शूद्र:
ब्राह्मण ग्रंथ, मुद्राराक्षस,विष्णु पुराण मौर्य वंश को शूद्र सिद्ध करते हैं।
पारसीक:
B.D. स्पूनर के मतानुसार चंद्रगुप्त मौर्य पारसीक था।
क्षत्रिय:
जैन और बौद्ध ग्रंथ मौर्यों को क्षत्रिय सिद्ध करते हैं। अधिकांश विद्वान इसी मत से सहमत हैं।
चंद्रगुप्त मौर्य के विभिन्न नाम:
यूनानी ग्रंथों में चंद्रगुप्त मौर्य के तीन नामों का उल्लेख मिलता है-सैंड्रोकोट्स, एनड्रोकोट्स, सैंद्रोकोप्टस।
प्रारंभिक जीवन:
चंद्रगुप्त मौर्य के प्रारंभिक जीवन के बारे में किवदंतियां एवं परंपराएं अधिक हैं और ठोस प्रमाण कम है। इस संबंध में चाणक्य-चंद्रगुप्त कथा के अनुसार अंतिम नंद शासक धननंद द्वारा अपमानित किए जाने पर चाणक्य ने उसे समूल नष्ट करने का प्रण किया। संयोगवश उसकी मुलाकात चंद्रगुप्त से होती है। चंद्रगुप्त की प्रतिभा से प्रभावित होकर चाणक्य उसे शिक्षा- दीक्षा के लिए तक्षशिला भेजता है।शिक्षा- दीक्षा के पश्चात चाणक्य की कूटनीति और चंद्रगुप्त के शौर्य एवं रण कौशल द्वारा नंद वंश के अंतिम राजा धननंद का उन्मूलन किया गया और मौर्य वंश की स्थापना की।
सेल्यूकस से युद्ध (305- 304B.C.)
सेल्युकस निकेटर, एलेग्जेंडर (सिकन्दर) के सबसे योग्य सेनापतियों में से एक था। जो उसकी मृत्यु के बाद भारत के विजित क्षेत्रों पर उसका उत्तराधिकारी बना। वह सिकन्दर द्वारा जीता हुआ भू-भाग प्राप्त करने के लिए उत्सुक था। इस उद्देश्य से 305 ई. पू. उसने भारत पर पुनः चढ़ाई की। सम्राट चन्द्रगुप्त ने पश्चिमोत्तर भारत के यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटर को पराजित कर एरिया (हेरात), अराकोसिया (कंधार), जेद्रोसिया(काबुल), पेरिस(मकराना), पेमियाई के भू-भाग को अधिकृत कर विशाल मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। चंद्रगुप्त से 500 हाथी लेने के बाद,सेल्यूकस ने अपनी पुत्री हेलन का विवाह चन्द्रगुप्त से कर दिया। उसने मेगस्थनीज को राजदूत के रूप में चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में नियुक्त किया। कुछ समय पश्चात सेल्यूकस ने अपने राजदूत मेगस्थनीज को पाटलिपुत्र में रहने और चंद्रगुप्त मौर्य कि शासन के बारे में इंडिका नाम की एक किताब लिखने के लिए भेजा।
(getCard) #type=(post) #title=(You might Like)
संपूर्ण भारत की विजय:
प्लूटार्क के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य और सेल्यूकस के बीच संधि के बाद चंद्रगुप्त ने 6 लाख की सेना लेकर संपूर्ण भारत को जीत लिया। इस आधार पर चंद्रगुप्त की पश्चिमी सीमा हिंदकुश पर्वत से पूर्व में बंगाल तक तथा उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में मैसूर तक विस्तृत हो गई।जैन ग्रंथ ' राजावली कथा' में उल्लेख मिलता है कि चंद्रगुप्त मौर्य अपने पुत्र सिंहसेन को सिंहासन सौंपकर चंद्रगिरि पर्वत (कर्नाटक) चला गया और वहीं तपस्या करके , संलेखना पद्धति से अपनी जीवन लीला समाप्त कर दी।