प्राचीन भारत पर विदेशी आक्रमण
ईरानी या हखामनी या पारसीक आक्रमण
भारत पर सर्वप्रथम आक्रमण साइरस द्वितीय (ईरानी) ने किया।उसके पश्चात डेरियस प्रथम या दारा प्रथम ने 516 ईसा पूर्व में आक्रमण कर भारत के पश्चिमी-उत्तर भाग को अपने 20वें प्रांत में शामिल किया। इतिहास के पिता कहे जाने वाले हेरोडोटस ने लिखा है कि इस प्रांत से दारा को 360 टैलेंट की आय होती थी। फारसियों से संपर्क के कारण पश्चिमोत्तर प्रदेशों में खरोष्ठी नामक एक नई लिपि का जन्म हुआ जो ईरानी आरमेइक लिपि से उत्पन्न हुई थी। इन प्रदेशों की भाषाएं भी पारसीक भाषा से प्रभावित हुई। कुछ विद्वानों के अनुसार अशोक द्वारा हखामनी सम्राटों की तरह स्तंभों और शिलाओं पर खुदवाई गई घोषणाएं और इन स्तंभों के घंटाकर शीर्ष ईरानी प्रभाव का साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं।
सिकंदर का आक्रमण
सिकंदर यूनान के मकदूनिया प्रांत का निवासी था। उसने भारत पर 326 ईसा पूर्व में आक्रमण किया परंतु व्यास नदी के आगे ना बढ़ सका। इस समय मगध का शासक धनानंद था। सिकंदर भारत में कुल 19 महीने रहा।
झेलम (वितस्ता ) का युद्ध
भारत में सिकंदर का सबसे सशक्त विरोध झेलम तथा चिनाब के मध्यवर्ती प्रदेश के शासक पोरस ने किया। युद्ध में अद्भुत वीरता दिखाने के बावजूद भी पोरस पराजित हुआ बाद में सिकंदर ने उसका राज्य वापस कर दिया। सिकंदर की सहायता करने में तक्षशिला के शासक आंभी जिसका राज सिंधु तथा झेलम नदियों के बीच फैला था ने प्रमुख भूमिका निभाई ।
आक्रमण का प्रभाव
इतिहासकार विंसेंट स्मिथ ने लिखा है कि सिकंदर आंधी की तरह आया और चला गया परन्तु भारत अपरिवर्तित रहा। व्यापारिक संपर्क के फलस्वरुप भारत में यूनानी मुद्राओं के अनुकरण पर उलूक शैली के सिक्के ढाले गए। सिकंदर ने कुछ नगरों के स्थापना की। सिकंदर के आक्रमण की तिथि 326 ईसा पूर्व ने भारत के क्रमागत इतिहास को लिखने में बड़ी सहायता की। सिकंदर 19 महीने तक भारत में रहने के बाद उसकी सेना ने व्यास नदी के आगे बढ़ने से इनकार कर दिया। विवश होकर उसे वापस लौटना। वापस लौटते समय अनेक गणराज्यों के विरोध का सामना उसे करना पड़ा। जिसमें सबसे प्रबल विरोध मालवा तथा क्षुद्रक के गणसंघों का था। इस संघर्ष में सिकंदर घायल हुआ। अंततः मालव पराजित हुए और उनके राज्य के सभी नर- नारी तथा बच्चे मौत के घाट उतार दिए गए। सिंधु नदी के मुहाने पर पहुंचकर सिकंदर ने अपनी सेना को दो भागों में विभक्त किया। जलसेना को नियारकस के नेतृत्व में समुद्र मार्ग से वापस लौटने का आदेश देकर वह स्वयं मकरान के किनारे-किनारे स्थल मार्ग से अपने देश की ओर चला। रास्ते में ईसा पूर्व 323 में बेबीलोन में सिकंदर की मृत्यु हो गई।