मौर्य कालीन समाज

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मौर्य कालीन सामाजिक जीवन

मौर्य कालीन सामाजिक जीवन 


कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में समाज के चारों वर्णों- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, और शूद्र का उल्लेख किया है। कौटिल्य ने शूद्रों को भी आर्य कहा। उसके अनुसार शूद्र का कार्य शिल्प, व्यापार, कृषि तथा पशुपालन भी हो सकता है। शूद्रों को उसने सेना में भर्ती होने की अनुमति दी।


कौटिल्य ने अनेक वर्णसंकर जातियों का उल्लेख किया है। इनकी उत्पत्ति विभिन्न वर्णों के अनुलोम और प्रतिलोम विवाहों से बताई गई। कौटिल्य ने सभी वर्ण संकर जातियों को शूद्र वर्ग के अंतर्गत रखा है।


मेगस्थनीज भारतीय समाज का वर्गीकरण भारतीय ग्रन्थों में वर्णित वर्गीकरण से भिन्न है।मेगस्थनीज ने भारतीय समाज को सात जातियों में विभक्त किया है -दार्शनिक, किसान, अहीर या ग्वाले, कारीगर या शिल्पी, सैनिक, निरीक्षक और सभासद। मेगस्थनीज के अनुसार भारत में दास प्रथा नही थी परंतु कौटिल्य ने नौ प्रकार के दासों का वर्णन किया है।


स्त्रियों की दशा:


परिवार में स्त्रियों की दशा स्मृति काल की अपेक्षा अधिक अच्छी थी। उन्हें पुनर्विवाह तथा नियोग की अनुमति थी। फिर भी स्त्रियों की स्थिति को अधिक उन्नत नहीं कहा जा सकता। उन्हें बाहर जाने की स्वतंत्रता नहीं थी। अर्थशास्त्र में सती प्रथा के प्रचलित होने का प्रमाण नहीं मिलता किंतु यूनानी लेखकों ने उत्तर-पश्चिम में सैनिकों की स्त्रियों के सती होने का उल्लेख किया है। मौर्य युग में गणिका या वेश्याओं का भी उल्लेख मिलता है। स्वतंत्र रूप से वेश्यावृत्ति करने वाली स्त्रियां रूपाजीवा कहलाती थीं। इससे राज्य को आय होती थी।


शिक्षा एवं मनोरंजन: 


इस काल में वर्णाश्रम धर्म के अनुसार शिक्षा दिए जाने का उल्लेख मिलता है। धर्म, व्याकरण, राजनीति शिक्षा के अनिवार्य विषय माने जाते थे। तक्षशिला, उज्जैन एवं वाराणसी मौर्य काल में शिक्षा के प्रमुख केंद्र माने जाते थे। प्रौद्योगिकी शिक्षा की व्यवस्था श्रेणियों द्वारा की जाती थी।

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मनोरंजन के लिए कई तरीकों का वर्णन मिलता है नट, नर्तक,गायक, वादक आदि समाज में लोगों का मनोरंजन किया करते थे। अर्थशास्त्र में रंगशालाओं का भी वर्णन है इस प्रकार के कार्यक्रम में भोज्य पदार्थों की अधिकता होती थी।

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