यूरोपियों कंपनियों का आगमन

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यूरोपियों कंपनियों का आगमन


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विदेशी कंपनियों के भारत में आने का क्रम 


सबसे पहले यूरोप से पुर्तगाली आए, उसके बाद अंग्रेज आए, फिर डच, फिर, डेनिश, फिर फ्रांसीसी।


पुर्तगाली कंपनी


1453 में कुस्तुनतुनिया (इस्तांबुल) पर तुर्कों का अधिकार हो गया। अतः अब भारत के लिए नए मार्ग की खोज शुरू हुई।


1487 में बार्थोलोम्यू डियाज ने उत्तमाशा अंतरीप (केप ऑफ गुड होप) की खोज तथा 1498 में वास्कोडिगामा द्वारा कालीकट की यात्रा।


भारत आते समय वास्कोडिगामा ने अब्दुल मुरीद नामक गुजराती पथ प्रदर्शक की सहायता ली।


इनका पहला दुर्ग कोचीन में स्थापित हुआ तथा फ्रांसिस्को डी अल्मीडा इसका गर्वनर बना।


1503 में अल्मीडा ने दीव पर कब्जा कर लिया। अतः पुर्तगाली हिंद महासागर की सबसे शक्तिशाली शक्ति बन गए।


पुर्तगालियों ने अकबर की अनुमति से हुगली में कारखाना खोला।


1662 ई, में ब्रिटिश राजकुमार चार्ल्स द्वितीय को पुर्तगालियों से दहेज के रूप में बंबई अंग्रेजों को प्राप्त हुआ।


पुर्तगालियों द्वारा अपने अधीन सामुद्रिक मार्गों पर सुरक्षा कर वसूल करने को कार्टेज-आर्मेडा व्यवस्था कहा जाता था।


इन्होंने भारत में तम्बाकू की खेती का प्रचलन किया। 1556 ई. में इन्होंने भारत में प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना की।


डच कंपनी


डच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 1602 में की गई। इसे संयुक्त राज्य ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम से जाना जाता था।


गोलकुंडा के शासक से कारखाना स्थापित करने का फरमान प्राप्त हुआ। 1605 ई. में मसूलीपट्टनम में स्थाई डच फैक्ट्री की स्थापना की।


मसूलीपट्टनम से नील का निर्यात किया जाता था।


डचों ने मसालों के स्थान पर भारतीय कपड़ों के निर्यात पर बल दिया।


1795 ई. में अँग्रेजों ने डचों को अंतिम रूप से भारत से निष्कासित कर दिया।


ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी


1600 ई. में महारानी एलिजाबेथ के द्वारा पूरब की ओर व्यापार करने का चार्टर कंपनी को दिया। इस कंपनी का पूरा नाम द गर्वनर एण्ड कंपनी ऑफ मर्चेंट्स लंडन ट्रेडिंग इन टू द ईस्ट इण्डीज था। 


1608 ई. में विलियम हॉकिंस जहाँगीर के दरबार में आया। 


1613 में टामस रो मुगल दरबार में आया। 


1639 में फ्रांसिस डे नामक अधिकारी ने चंद्रगिरी के शासक से मद्रास प्राप्त किया।


1633 ई. में उड़ीसा के हरिहरपुर और बालासोर में तथा 1651 ई. में बंगाल के हुगली में ब्रिटिश फैक्ट्री स्थापित हुई।


1686 ई. में अंग्रेजों की औरंगजेब से टकराहट हुई। उसकी वजह थी कि ब्रिटिश ने बंगाल में किलेबंदी शुरू कर दी थी।


1698 ई. में अंग्रेजों ने कालीकाता, सुतानाती, गोविंदपुर की जमींदारी प्राप्त की। जॉब चरनाक ने उन्हीं स्थानों पर कलकत्ता की स्थापना की।


डेनिश कंपनी


डेनिश कंपनी का आगमन 1616 ई. में हुआ। 1620 ई. में तमिलनाडु के ट्रंकोबर नामक क्षेत्र में इसने व्यापारिक केंद्र खोला।


फ्रांसीसी कंपनी

1664 ई. में फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी का गठन हुआ।

इस कंपनी का पूरा नाम कंपनी देस इण्डस ओरिएणटलस था। इसकी स्थापना फ्रांस के मंत्री कोलबर्ट के प्रयासों से हुई। 

1668 ई. में व्यापारिक केंद्र स्थापित हुआ। 1669 ई. में मसूलीपट्टनम में दूसरी कंपनी स्थापित हुई।

1673 ई. में फ्रैंको मार्टिन तथा वेलांग द वलिकोण्डापुरम् के मुस्लिम सूबेदार से एक छोटा गाँव प्राप्त किया। इस पर पांडिचेरी की नींव पड़ी।

1674 ई. में तत्कालीन बंगाल के गवर्नर शाइस्ता खान ने फ्रांसीसियों को एक जगह दी थी जिस पर उसने 1690-1692 ई. में चंद्रनगर नामक बस्ती बसाई।



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