मगध साम्राज्य - शिशुनाग वंश

Gyanalay
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 मगध साम्राज्य   

      

                शिशुनाग वंश
         (412B.C.से 344B.C.)

   

शिशुनाग वंश प्राचीन भारत में मगध साम्राज्य का एक शक्तिशाली राजवंश था। यह वंश 412 ईसा पूर्व से 344 ईसा पूर्व तक शासन किया ।शिशुनाग वंश के संस्थापक शिशुनाग थे।


शिशुनाग वंश के प्रमुख राजा:


1. शिशुनाग (412-395 ईसा पूर्व)

2. कलाशोक (395-377 ईसा पूर्व)

3. क्षेमधर्म (377-365 ईसा पूर्व)

4. क्षेत्रज्ञ (365-355 ईसा पूर्व)

5. विधिशार (355-344 ईसा पूर्व)


शिशुनाग वंश की उपलब्धियां:


1. मगध साम्राज्य का विस्तार

2. आर्थिक और सांस्कृतिक विकास

3. बौद्ध धर्म का समर्थन।


कालाशोक अथवा काकवर्ण की उपलब्धियां: 


शिशुनाग ने मगध साम्राज्य की राजधानी पाटिलपुत्र से वैशाली स्थानांतरित कर दी थी परंतु कालाशोक ने पुनः अपनी राजधानी पाटिलपुत्र में स्थानांतरित कर ली।इस समय के बाद से पाटिलपुत्र में ही मगध की राजधानी रही। कालाशोक के शासनकाल में ही वैशाली में द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ।


शिशुनाग वंश का पतन:


शिशुनाग वंश का पतन महापद्म नंद द्वारा किया गया, जो एक शक्तिशाली और महत्वाकांक्षी राजा थे। उन्होंने शिशुनाग वंश के अंतिम राजा विधिशार को हराकर मगध साम्राज्य पर कब्जा कर लिया और नंद वंश की स्थापना की।


   नंद वंश (344B.C.-324B.C.)


यह प्राचीन भारत का एक शक्तिशाली राजवंश था, जिसका शासनकाल 344 ईसा पूर्व से 324 ईसा पूर्व तक रहा। इस वंश की स्थापना महापद्मनंद ने की थी, जो एक महान राजा और सेनापति था। उनका नाम "सर्वक्षत्रांतक", "एकराट" और "उग्रसेन" भी था।


नंद वंश के प्रमुख राजा


- महापद्मनंद

- पंडुक

- पंडुगति

- भूतपाल

- राष्ट्रपाल

- गोविषाणक

- दशसिद्दक

- कैवर्त

- धनानन्द


नंद वंश का मगध के उत्थान में महत्वपूर्ण योगदान रहा। महापद्मनंद ने काशी, कौशल, वज्जि, मल्ल, चेदी, वत्स, अंक, मगध, अवनीत, कुरु पांचाल, गंधार, कंबोज, शूरसेन, अश्मक एवं कलिंग जैसी विशाल जनपदों को जीतकर एक सुदृढ़ केंद्रीय प्रशासन की नींव रखी थी।

    

धनानंद नंद  इस वंश का अंतिम सम्राट था। जनता पर अत्यधिक कर लगाने के कारण जनता इससे असंतुष्ट थी, इसी का फायदा उठाकर चंद्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य की मदद से इसे मार कर मौर्य वंश की स्थापना की। इसी के शासनकाल में सिकंदर ने 326 ईसा पूर्व में भारत पर आक्रमण किया।


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