वैदिक संस्कृति: आर्थिक जीवन

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वैदिक संस्कृति: आर्थिक जीवन 


वैदिक संस्कृति: आर्थिक जीवन


पूर्व वैदिक काल:

    

पूर्व वैदिक कालीन आर्य स्थाई रूप से बसें नहीं थे इसलिए उनके जीवन में कृषि की अपेक्षा पशुपालन का अधिक महत्व था। पशुओं में गाय की सर्वाधिक महत्ता थी। गाय की गणना संपत्ति में की जाती थी। ऋग्वेद में 176 बार गाय का उल्लेख है, गाय के अलावा दूसरा प्रमुख पशु घोड़ा था। घोड़े का प्रयोग मुख्यतः रथों में होता था। ऋग्वेद में भैंस, भैंस, भेड़, बकरी, ऊंट तथा सरामा नामक एक पवित्र कुतिया का उल्लेख है ऋग्वेद में बाघ और हाथी का उल्लेख नहीं मिलता है।


कृषि:

  

ऋग्वेद में पशुपालन की तुलना में कृषि का स्थान गौड़ था। ऋग्वेद में एक ही अनाज यव(जौ) का उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद के कुल 10462 श्लोकों में केवल 24 में ही कृषि का उल्लेख है।


उद्योग धंधे: 

   

ऋग्वेद में बढ़ाई, रथकार, बुनकर, चर्मकार, कुम्हार और शिल्पियों के उल्लेख मिलते हैं। सोने के लिए हिरण्य शब्द तथा सिंधु नदी के लिए हिरण्यी शब्द प्रयुक्त हुआ है क्योंकि सिंधु नदी से सोना प्राप्त किया जाता था। तांबे या कांसे के लिए अयस शब्द प्रयोग किया गया है। एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि ऋग्वेद में लोहा और चांदी का उल्लेख नहीं है।


व्यापार: 

  

ऋग्वेद में समुद्र का स्पष्ट उल्लेख न होने से उनके वैदेशिक व्यापार का पता नहीं चल पाता है। व्यापार वस्तुत: वस्तु -विनिमय पर आधारित था। गाय लेनदेन के माध्यम के रूप में प्रयोग की जाती थी। कुल मिलाकर ऋग्वेद कालीन अर्थव्यवस्था ग्रामीण थी।


उत्तर वैदिक काल: 

   

उत्तर वैदिक काल में कृषि का महत्व बढ़ गया क्योंकि अब आर्यों के जीवन में स्थायित्व आ गया था। इसका प्रमुख कारण था लोहे का प्रयोग। इस प्रकार आर्यों के जीवन में कृषि का महत्व बढ़ गया एवं पशुपालन का महत्व कम हो गया।


कृषि: 

   

उत्तर वैदिक काल में आर्यों का प्रमुख व्यवसाय कृषि था। अब आर्यों को जौ के अलावा चावल, गन्ना, अलसी आदि फसलों का ज्ञान हो चुका था । शतपथ ब्राह्मण से पता चलता है कि हालों में 6,8,12और  24 तक बैल जोते जाते थे। अथर्ववेद में सिंचाई के प्राकृतिक साधनों के अलावा नहरों एवं कुआं का भी उल्लेख मिलता है।


पशुपालन: 

  

उत्तर वैदिक काल में गाय, भैंस, बकरी, भेड़, गधे, सुअर आदि पशुओं उल्लेख मिलता है। हाथी का पालना भी अब शुरू हो गया था।


व्यापार:

  

उत्तर वैदिक आर्यों को समुद्र का ज्ञान हो गया था,इस कल के साहित्य में पश्चिमी और पूर्वी दोनों प्रकार के समुद्रों का वर्णन है।इससे किसी न किसी तरह के वाणिज्य और व्यापार का संकेत मिलता है। परंतु सिक्कों का प्रचलन न होने से अभी भी व्यापार वस्तु- विनिमय पर आधारित था।

       

कुल मिलाकर उत्तर वैदिक काल में लोगों के भौतिक जीवन में भारी उन्नति हुई।अब वैदिक लोग उत्तरी गंगा के मैदानों में स्थाई रूप से बस गए । परंतु अभी भी लोग का कच्ची ईंटों के घरों में लकड़ी के खम्भो पर टिके टट्टी के घरों में रहते थे।

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