हिन्द-यवन (इंडो-ग्रीक)
मौर्योत्तर काल की सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना बैक्ट्रीया (अफगानिस्तान) के यवनों द्वारा भारत पर आक्रमण करना था। सबसे पहले यवन आक्रमणकारी डेमेट्रियस प्रथम था। इसने 183 ईसा पूर्व के लगभग पंजाब के एक बड़े भाग को जीत लिया और साकल को अपनी राजधानी बनाया। डेमेट्रियस ने भारतीय राजाओं की उपाधि धारण की और यूनानी तथा खरोष्ठी दोनों लिपियों वाले सिक्के चलाए। यवनों की कुल दो शाखाओं ने भारत पर शासन किया- डेमेट्रियस एवं यूक्रेटाइड्स के वंश।
डेमेट्रियस वंश :
राजधानी- साकल(श्यालकोट)
इस वंश का सबसे प्रतापी शासक मिनांडर हुआ।
मिनांडर(165- 145B.C.)
बौद्ध ग्रंथ मिलिंदपन्हो में मिनांडर के बौद्ध भिक्षु नागसेन के साथ वाद-विवाद के उपरांत बौद्ध धर्म का अनुयाई बनने की कथा है। इसकी राजधानी साकल शिक्षा और व्यापार का प्रसिद्ध केंद्र थी। इसी ने सर्वप्रथम सोने का लेखयुक्त या रूपयुक्त सिक्का जारी किया।
यूक्रेटाइड्स वंश :
राजधानी- तक्षशिला
इस वंश का सबसे प्रतापी शासक एंटीयालकीड्स था। इसने शुंग शासक भागभद्र के विदिशा स्थित दरबार में एक राजदूत हेलिओडोरस को भेजा, जिसने विदिशा में एक गरुड़ स्तंभ स्थापित किया तथा उस पर वासुदेव का नाम अंकित करवाया।
यूनानी संपर्क का प्रभाव:
1: भारतीयों ने ज्योतिष के क्षेत्र में यूनानियों से बहुत कुछ सीखा। सप्ताह का 7 दिनों में विभाजन एवं विभिन्न ग्रहों के नाम भी उनसे ही लिए गए।
2: नक्षत्र को देखकर भविष्य बताने की कला भारतीयों ने यूनानियों से ही सीखी।
3: सिक्के बनाने की कला में भारतीयों ने यूनानियों से बहुत कुछ सीखा। यूनानियों ने ही पहली बार लेखयुक्त सिक्के चलाएं जिस पर एक ओर राजा की आकृति और दूसरे ओर किसी देवता की मूर्ति या कुछ अन्य चिन्ह बनाए गए।
4: हिंद-यवन संपर्क के कारण कला की एक नवीन शैली होलेनिस्टिक कला का जन्म हुआ। इसका आदर्श रूप कनिष्क के समय की गांधार कला में दिखाई पड़ता है।
5: संस्कृत नाटकों में पटाक्षेप के लिए यवनिका शब्द का प्रयोग होने लगा। पर्दा प्रथा का प्रारंभ यही से माना जाता है।
6: धर्म और दर्शन के क्षेत्र में यूनान भारत का ऋणी हुआ। कई यूनानी राजाओं ने भारतीय धर्म को अपनाया हेलिओडोरस नामक राजदूत ने भागवत धर्म एवं मिनांडर ने बौद्ध धर्म अपना लिया। संभवत तपस्या और योग की क्रियाएं यूनानियों ने भारतीयों से ही सीखी।
महत्वपूर्ण लिंक 🔗
👉🏼 सामान्य अंग्रेजी हिंदी मीडियम