कण्व वंश (75-30B.C.)
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कण्व वंश एक प्राचीन भारतीय वंश था जो 75 ईसा पूर्व से 30 ईसा पूर्व तक शक्तिशाली रहा। यह वंश शुंग वंश के पतन के बाद स्थापित हुआ था।
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कण्व वंश के प्रमुख शासक:
1. वासुदेव
2. भूमिमित्र
3. नारायण
4. सुशर्मण
इस वंश के अंतिम शासक सुशर्मण की हत्या 30 ईसा पूर्व में सिमुक ने कर दी और एक नवीन ब्राह्मण वंश आंध्र-सातवाहन की नींव डाली।
आंध्र-सातवाहन वंश (30B.C.-250A.D.)
राजधानी: प्रतिष्ठान(महाराष्ट्र)
संस्थापक: सिमुक
पुराणों में इस वंश को आंध्र कहा गया है परंतु अभिलेखों में इन्हें सातवाहन कहा गया है। इसलिए इस वंश का नाम आंध्र सातवाहन वंश पड़ा। इनका क्षेत्र महाराष्ट्र और आंध्र दोनों था।
शातकर्णी प्रथम:
इसने दो अश्वमेघ यज्ञ एवं राजसूय यज्ञ किया। इसकी रानी नागानिका के नानाघाट अभिलेख से पता चलता है कि इसने पहले शताब्दी ईसा पूर्व में ब्राह्मणों एवं बौद्धों को भूमि अनुदान में दी । भूमिदान का यह पहला अभिलेखीय साक्ष्य है। कलिंग नरेश खारवेल ने इस पर असफल आक्रमण किया।
हाल:
इस शासन ने प्राकृत भाषा में गाथासप्तशती नामक पुस्तक की रचना। इसमें उसकी प्रेम गाथाओं का वर्णन है। इसी के समय में संस्कृत व्याकरण के लेखक सर्ववर्मन ने कातंत्र नामक पुस्तक संस्कृत में लिखी।
गौतमीपुत्र शातकर्णी (106-130A.D.)
यह सातवाहन वंश का महानतम शासक था। इसके समय में इसकी माता बलश्री का नासिक अभिलेख प्राप्त हुआ है। नासिक अभिलेख में इसे 'एकमात्र ब्राह्मण' एवं अद्वितीय ब्राह्मण' कहा गया है। इसने शक शासक नहपान को पराजित कर मार डाला।
वशिष्ठपुत्र पुलुमावी (130-154A.D.)
इसे शक शासक रुद्रदामन ने दो बार पराजित करने के बाद भी छोड़ दिया, क्योंकि इसके भाई शिवश्री शातकर्णी से रुद्रदामन की पुत्री का विवाह हुआ था।
शिवश्री शातकर्णी (154-165A.D.)
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यज्ञश्री शातकर्णी (165-194A.D.)
इसके सिक्कों पर जलयान का चित्र अंकित है जो जल यात्रा और समुद्री व्यापार के प्रति इसके प्रेम का परिचायक है।