कुषाण कौन थे

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 कुषाण वंश 

कुषाण वंश


मौर्योत्तर कालीन विदेशी राजवंशों में कुषाण राजवंश प्रमुख था। कुषाण मध्य एशिया में पश्चिमी चीन के यूची जाति के थे। भारत में सर्वप्रथम कुजुल कडफिसेस (15-65A.D.) नामक कुषाण शासक ने आक्रमण कर पश्चिमोत्तर प्रदेश पर अधिकार कर लिया। उसने केवल तांबे के सिक्के चलवाए।


विम कडफिसेस(65-78A.D.)


कुजुल कडफिसेस की मृत्यु के बाद विम कडफिसेस गद्दी पर बैठा। इसने तक्षशिला और पंजाब पर अधिकार कर लिया। इसे भारत में कुषाण शक्ति का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। उसने सोने तथा तांबे के सिक्के चलवाए। उसके सिक्कों पर एक ओर  यूनानी लिपि है और दूसरी ओर खरोष्ठी। उसके सिक्कों पर शिव की आकृति, नंदी बैल और त्रिशूल अंकित है, जो उसके शैव धर्म में आस्था का प्रतीक है।


कनिष्क (78-102 ई.) 


राजधानी- पुरुषपुर या पेशावर तथा मथुरा


कनिष्क के राज्यारोहण की तिथि 78 ई.भारत में शक संवत का सूचक है।


चीन से युद्ध: कनिष्क का चीन के शासक 'पान-चाओ' से युद्ध हुआ जिसमें पहले कनिष्क की पराजय हुई परंतु बाद में वह विजयी हुआ।


चतुर्थ बौद्ध संगीति- कनिष्क के समय में कश्मीर के कुंडलवन में 102 ईस्वी में चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ। यही बौद्ध धर्म हीनयान और महायान में विभाजित हो गया।


कला शैलियां- कनिष्क के समय में भारत में दो नवीन कला शैलियों का जन्म हुआ जिसे गांधार (इंडो-ग्रीक या ग्रीक-बुद्धिष्ट)एवं मथुरा कला शैली कहा जाता है।


सिल्क मार्ग पर अधिकार- 


कनिष्क ने चीन से रोम को जाने वाले सिल्क मार्ग की तीनों मुख्य शाखों पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया।


सिक्के- 

      

कुषाणों ने ही सर्वाधिक शुद्ध स्वर्ण सिक्के जारी किए । कुषाणों को ही सर्वाधिक ताम्र सिक्का चलाने का श्रेय भी प्राप्त है।


विद्वानों को आश्रय: 

     

कनिष्क की राजसभा अनेक योग्य विद्वानों से  सुशोभित थी। इनमें पार्श्व, वसुमित्र और अश्वघोष जैसे बौद्ध दार्शनिक थे। नागार्जुन जैसे प्रकांड पंडित और चरक जैसे चिकित्सक उसकी राज्यसभा के रत्न थे।


कनिष्क के उत्तराधिकारी: 


वासिष्क (102-106A.D.)

हुविष्क (106-140A.D.) यह शिव और विष्णु का उपासक था। इसने चतुर्भुजी विष्णु के सिक्के जारी किए।


वासुदेव: यह भी विष्णु एवं शिव का उपासक था। इसके समय में कुषाण वंश का अधिकांश क्षेत्र इसके अधिकार से बाहर निकल गया। कुषाणों ने केवल स्वर्ण एवं तांबे के सिक्के जारी किया, उन्होंने चांदी के सिक्के नहीं चलाए।


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