मौर्यकालीन आर्थिक जीवन
राज्य की अर्थव्यवस्था कृषि, पशुपालन और वाणिज्य व्यापार पर आधारित थी । इनको सम्मिलित रूप से वार्ता (वृत्ति का साधन) कहा गया है। इन फसलों में कृषि मुख्य था। मौर्य काल में सभी प्रकार की फसलों का उत्पादन होता था। अर्थशास्त्र में धान की फसल को सबसे उत्तम एवं गन्ने की फसल को सबसे निकृष्ट बताया गया है। अर्थशास्त्र में वर्ष में तीन फसलें उगाई जाने का उल्लेख है।
1:हैमन- रबी की फसल
2: ग्रैष्मिक- खरीफ की फसल
3: केदार- जायद की फसल।
मेगस्थनीज के अनुसार यहां वर्ष में दो बार वर्षा होती हैं। अतः कृषक दो फसल काटते हैं।
राजकीय भूमि की व्यवस्था सीताध्यक्ष द्वारा होती थी और इससे होने वाली आय को कौटिल्य ने सीता कहा है। राज्य की ओर से सिंचाई का समुचित प्रबंध था इसे सेतुबंध कहा गया है। इसके अंतर्गत तालाब, कुएं तथा झीलों पर बांध बनाकर एक स्थान पर पानी एकत्रित करना इत्यादि निर्माण कार्य आते हैं।
उद्योग-धंधे:
इस समय अनेक उद्योग धंधे भी प्रचलित थे। इस समय का प्रधान उद्योग सूत काटने और बुनने का था। बंग का मलमल विश्व विख्यात था। कौटिल्य ने चीनपट्ट का भी उल्लेख किया है, यह रेशम चीन से आता था।
व्यापार:
इस काल में उद्योगों के चरम विकास के स्वाभाविक परिणामस्वरुप व्यापार का भी विकास हुआ। मौर्य युग में चार प्रमुख मार्ग थे जो पाटिलपुत्र से उत्तर, पूर्व, पश्चिम एवं दक्षिण दिशा को जाते थे। इनमें सबसे प्रमुख मार्ग पाटिलपुत्र से पुरुषपुर तक जाता था। यह सबसे बड़ा व्यापारिक मार्ग था। इसे उत्तरापथ कहा जाता था।
(getCard) #type=(post) #title=(You might Like)
इस समय का सबसे प्रमुख बंदरगाह पश्चिमी तट पर भड़ौच और सोपारा था। पूर्वी तट पर सबसे प्रसिद्ध बंदरगाह तामलुक था।
सिक्के:
मौर्यों की राजकीय मुद्रा पण थी। यह 3/4 तोले के बराबर चांदी का सिक्का था। अधिकारियों को वेतन आदि देने में इसी का प्रयोग होता था। इसके ऊपर सूर्य, चंद्र, पीपल, मयूर, बैल, सर्प आदि खुदे होते थे। अतः इसे आहत या पंचमार्क सिक्का कहा जाता था। इस कल के सिक्के सोना,चांदी और तांबे के बने होते थे।
स्वर्ण सिक्के - निष्क या सुवर्ण
चांदी के सिक्के- पण या कार्षापण या शतमान
तांबे के सिक्के- माषक और काकणी।
महत्वपूर्ण लिंक 🔗
👉🏼 सामान्य अंग्रेजी हिंदी मीडियम