मौर्यकालीन कला
मौर्य कला भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण युग है, जो 322 ईसा पूर्व से 185 ईसा पूर्व तक चला। इस युग में मौर्य साम्राज्य का विकास हुआ, जो भारत का पहला बड़ा साम्राज्य था। मौर्य कालीन कला को दो भागों में बांटा जा सकता है- राजकीय कला एवं लोक कला।
मौर्य कला के प्रमुख उदाहरण-
1. अशोक के स्तंभ
2. सारनाथ के स्तंभ
3. बोधगया का महाबोधि मंदिर
4. पाटलिपुत्र के महल
5. मौर्य कला की मूर्तियाँ (जैसे कि यक्ष और यक्षिणी)
राजकीय कला-
इसके अंतर्गत नगर निर्माण, स्तूप, गुफाएं एवं स्तंभ आते हैं।
कौटिल्य के अनुसार नगर गहरी खाइयों एवं रक्षा प्रचीरों से घिरे होने चाहिए।
मेगस्थनीज ने (पॉलीब्रोथा) पाटलिपुत्र नगर का वर्णन किया है।गुप्त काल में भारत आए चीनी यात्री फाह्यान ने लिखा है कि पाटलिपुत्र का राजप्रासाद देवताओं द्वारा निर्मित है। बौद्ध ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है कि अशोक ने 84 000 स्तूपों का निर्माण करवाया।जिसमें से दो बहुत ही महत्वपूर्ण है-
1- सांची का महास्तूप
2-सारनाथ का धर्मराजिक स्तूप।
गुफाओं का निर्माण भी मौर्य काल में ही प्रारंभ हुआ अशोक तथा उसके पौत्र दशरथ ने बराबर एवं नागार्जुनी पहाड़ी में आजीवकों को गुफाएं काटकर दान में दीं।
स्तंभ -
मौर्य कालीन कला का उत्कृष्ट प्रदर्शन अशोक के स्तंभों में दिखाई पड़ता है। ये स्तंभ मथुरा और चुनार की पहाड़ियों से लाकर लाल बलुई पत्थरों से बनाए गए हैं। ये स्तंभ एकाश्मक पत्थरों (एक ही पत्थर से) बने हैं। इन पत्रों में चमकदार पॉलिश की गई है। ये 30 से 50 फीट लंबे हैं।इनका वजन 1000 से लेकर 1200 मन तक है।
सारनाथ स्तंभ
स्मिथ के अनुसार इस स्तंभ में जिस प्रकार की कला का प्रदर्शन (पशुओं का चित्रण) है।विश्व में कहीं भी इतनी सुंदर कला का प्रदर्शन नहीं है।
सारनाथ में सिंहों के नीचे चार पशु दौड़ती हुई मुद्रा में दर्शाए गए हैं- बैल,घोड़ा, हाथी एवं सिंह तथा बीच में एक चक्र है। कुल चार पशु एवं चक्र चौकी को आवृत्त किए हैं। प्रत्येक चक्र में 24 आरे हैं। यह चारों पशु चार दिगपाल प्रतीत होते हैं। इसी कला परंपरा को दीर्घ निकाय में चक्ररत्न कहा गया है। चौकी के ऊपर चार सिंह चार दिशाओं में मुख किये कुकड़ू बैठे हैं जो सम्राट अशोक की शक्ति को इंगित करते हैं। सारनाथ के शीर्ष स्तंभ पर 32 आरो वाला एक चक्र बना है। यह खंडित अवस्था में है, इसे धर्म चक्र प्रवर्तन का प्रतीक माना जाता है।
सांची का स्तंभ
सांची में भी चार सिंह पीठ सटाए हुए बैठे हैं लेकिन सांची के स्तंभ में सिंहों के नीचे दाना चुगते हुए हंस दर्शाए गए हैं।
लोक कला
मौर्य कालीन स्थलों से बहुत सी पत्थर की मूर्तियाँ एवं मृदभांड मिले हैं।
मौर्य कला की विशेषताएं-
1. स्थापत्य-मौर्य काल में स्तंभ, मंदिर, और महल बनाए गए।
2. मूर्तिकला-मौर्य काल में पत्थर और धातु की मूर्तियाँ बनाई गईं।
3. चित्रकला-मौर्य काल में भित्तिचित्र और पुस्तक चित्र बनाए गए।
4. शिल्पकला-मौर्य काल में पत्थर, धातु, और लकड़ी के शिल्प बनाए गए।
मौर्य कला का महत्व-
1. भारतीय कला की नींव-मौर्य कला ने भारतीय कला की नींव रखी।
2. बौद्ध कला का विकास-मौर्य कला ने बौद्ध कला को प्रभावित किया।
3. सांस्कृतिक आदान-प्रदान-मौर्य कला ने अन्य संस्कृतियों के साथ आदान-प्रदान किया।
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