मौर्योत्तर कालीन संस्कृति
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मौर्योत्तर कालीन प्रशासन:
कुषाण राजाओं ने चीनी शासकों के अनुरूप उपाधियां धारण की जो उनकी दैवीय उत्पत्ति में विश्वास को प्रदर्शित करता है। रोम के शासको के समान मृत राजाओं की मूर्तियां स्थापित करने के लिए मंदिर बनवाने की प्रथा (देवकुल) भी प्रारंभ हुई।
सातवाहन शासको ने ब्राह्मणों एवं बौद्ध भिक्षुओं को पहली शताब्दी ईसा पूर्व में कर मुक्त भूमि प्रदान करने की प्रथा प्रारंभ की। सातवाहनों के समय का नानाघाट अभिलेख भूमि दान का प्रथम अभिलेखीय प्रमाण है।
शकों तथा पार्थियन शासको ने संयुक्त शासन का चलन प्रारंभ किया, जिसमें युवराज सत्ता के उपभोग में राजा का बराबर का सहभागी होता था। शक और कुषाण लोग पार्थियनो के माध्यम से हखामनी राजवंश की क्षत्रपी-प्रणाली भी इस देश में लाएं।
मौर्योत्तर कालीन सामाजिक दशा
मौर्योत्तर काल में भी परंपरागत चारों वर्ण- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र प्रचलित थे किंतु शिल्प और वाणिज्य में उन्नति का फायदा शूद्रों को मिला, क्योंकि अधिकतर कारीगर शूद्र वर्ण से ही आते थे। अतः अब उनके धन एवं प्रतिष्ठा में पहले की अपेक्षा वृद्धि हुई। इस प्रकार वैश्य एवं शूद्रों के बीच का अंतर कुछ काम हो गया। फिर भी मनु ने शूद्रों के लिए बड़े कठोर नियम रखें।उनका कार्य तीनों वर्णों की सेवा ही था।
इस कल के विदेशी शासको को म्लेच्छ कहकर पुकारा गया, परंतु उन्हें निम्न क्षत्रिय वर्ग के रूप में मान्यता प्रदान कर दी गई।
मनु यद्यपि कट्टर ब्राह्मणवादी थे किंतु उनकी स्मृति में लगभग 60 वर्ण संकर जातियों का उल्लेख है।
मौर्योत्तर कालीन साहित्य
नाट्य शास्त्र: इसके लेखक भरत मुनि हैं।
महाभाष्य: यह पतंजलि की रचना है जो पाणिनि की अष्टाध्याई पर लिखी गई टीका है।
गाथा सप्तशती: यह प्राकृत भाषा में सातवाहन शासक हाल की रचना है। इसमें हाल की प्रेम गाथाओं का वर्णन है यह पुस्तक मुक्तक काव्य का प्राचीनतम उदाहरण है।
कामसूत्र: इसके लेखक वात्स्यायन हैं।
मनुस्मृति: ईसा पूर्व दूसरी सदी से ईशा की दूसरी सदी के बीच लिखी गई।
बुद्धचरित: इसके लेखक अश्वघोष हैं।
सौंदरानंद: इसके लेखक भी अश्वघोष है। यह बुद्ध के सौतेले भाई आनंद के बौद्ध धर्म में दीक्षित होने के प्रसंग पर आधारित है।
स्वप्न वासवदत्ता: भास द्वारा रचित यह नाटक वत्सराज उदयन एवं वासवदत्ता की प्रेम कथा पर आधारित है। भास को ही सर्वप्रथम संस्कृत में नाटक लिखने का श्रेय प्राप्त है।