शक आक्रमण
यूनानियों के बाद मध्य एशिया के शकों ने भारत पर आक्रमण किया। भारत के शक राजा अपने आप को क्षत्रप कहते थे। भारत में वे मुख्यतः दो शाखाओं में विभाजित थे- प्रथम उत्तरी क्षत्रप कहलाते थे जो तक्षशिला एवं मथुरा में थे और दूसरे पश्चिमी क्षत्रप कहलाते थे जो नासिक एवं उज्जैन में थे।
तक्षशिला के शक :
इस शाखा का प्रथम शासक माउस (20B.C.- 22A.D.) था।
मथुरा के शक :
ऐसा माना जाता है कि मथुरा के शक पहले मालवा क्षेत्र में रहते थे जिन्हें 57 ईसा पूर्व में विक्रमादित्य नामक शासक ने पराजित किया जिससे वे भाग कर मथुरा आ गए। इन्हीं विक्रमादित्य के नाम पर एक नवीन संवत 'विक्रम संवत' या 'मालव संवत' 57 ईसा पूर्व की नींव पड़ी। मथुरा का प्रथम शक शासक राजुल था। उसके बाद उसका पुत्र शोडास राजा हुआ।
नासिक के शक:
नासिक के क्षत्रपों में दो प्रसिद्ध शासक भूमक और नहपान थे। वे अपने आप को क्षहरात क्षत्रप कहते थे। इसमें सबसे प्रसिद्ध शक शासक नहपान था।
नहपान(119A.D.-124A.D.)
इसके राज्य में काठियावाड़, दक्षिणी गुजरात, पश्चिमी मालवा, उत्तरी कोकण, पूना आदि शामिल थे। उसने सातवाहन राजाओं से अनेक भू-भाग छीन लिए। सातवाहन शासक गौतमीपुत्र शातकर्णी ने इसे पराजित कर मार डाला। नहपान का दामाद सातवाहन शासक ऋषभदत्त था।
मालवा अथवा उज्जैन के शक:
इस वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक रुद्रदामन था जबकि पहला स्वतंत्र शासक चष्टन था।
रुद्रदामन((130-150A.D.)
यह मालवा के शासको में सबसे प्रसिद्ध शासक था। इसके विषय में जानकारी का प्रमुख स्रोत इसका जूनागढ़ अभिलेख (150 ई.) है।इस अभिलेख से पता चलता है कि इस समय यहां का राज्यपाल सुविशाख था । जिसने सुदर्शन झील के बांध का पुनर्निर्माण करवाया। रुद्रदामन व्याकरण, राजनीति, संगीत एवं तर्कशास्त्र का पंडित था। मालवा के शकों में अंतिम शासक रूद्रसिंह तृतीय था जिसे गुप्त शासक चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने मार कर पहली बार मालवा क्षेत्र में ब्याघ्र शैली में चांदी के सिक्के चलवाए।