शुंग वंश (185-75B.C.)
अन्तिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ के सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने 185 B.C.में उसकी हत्या कर शुंग वंश की स्थापना की।
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पुष्यमित्र शुंग (185-149B.C.)
राजधानी -पाटलिपुत्र
पुष्यमित्र शुंग के विषय में जानकारी इसके अयोध्या अभिलेख से प्राप्त होती है, जो इसके राज्यपाल धनदेव से संबंधित है। इस अभिलेख से पता चलता है कि पुष्यमित्र शुंग ने दो अश्वमेघ यज्ञ करवाए। इसे कराने का श्रेय पतंजलि को है। पुष्यमित्र के समय में यवनों ने आक्रमण किया परंतु पुष्यमित्र ने उन्हें पराजित कर दिया।
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बौद्ध ग्रन्थों में पुष्यमित्र शुंग को बौद्धों का उत्पीड़क बताया गया है। परंतु यह पूर्णतः सत्य नहीं प्रतीत होता है क्योंकि कि अशोककालीन सांची के महास्तूप का पुनर्निर्माण करवाया तथा उसे भरहुत स्तूप का निर्माण का श्रेय प्राप्त है।
सांची का स्तूप
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सांची का स्तूप मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में विदिशा में स्थित है। यहां पर तीन स्तूपों का निर्माण हुआ है। सांची का महास्तूप सबसे बड़ा एवं कला की दृष्टि से सर्वोत्तम है। इसका निर्माण अशोक के समय में ईंटों से हुआ और उसके चारों ओर काष्ठ वेदिका बनी थी परंतु शुंग काल में उसे पाषाण पट्टिकाओं से जड़ा गया और वेदिका भी पाषाण की बनाई गई।
भरहुत स्तूप
भरहुत स्तूप सतना के पास स्थित है। इसका निर्माण पुष्यमित्र शुंग ने कराया। इसकी खोज 1873 ईस्वी में अलेक्जेंडर कनिंघम ने की।
अग्निमित्र- पुष्यमित्र शुंग के बाद अग्निमित्र शासक बना।
वसुमित्र- कालिदास के मालविकाग्निमित्र नाटक से पता चलता है कि अग्निमित्र के समय में यवन आक्रमण हुआ। वशुमित्र ने उन्हें सिंधु नदी के तट पर पराजित किया।
ब्रजमित्र - यह वशुमित्र के बाद शासक हुआ।
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भागभद्र - इसके विदिशा स्थित दरबार में हिंद-यवन शासक एंटीयालकीड्स ने हेलिओडोरस नामक राजदूत भेजा था।
देवभूति- यह शुंग वंश का अंतिम शासक था। इसके मंत्री वसुदेव ने इसकी हत्या कर एक नए वंश (कण्व वंश) की स्थापना की।
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