परवर्ती गुप्त
स्कंदगुप्त के अंतिम समय में गुप्त वंश पतन की ओर अग्रसर होने लगा। इस समय के सोने सिक्कों में मिलावट भी बढ़ने लगी। परवर्ती गुप्तों में पहला शासक पुरुगुप्त था। परवर्ती गुप्त शासक गुप्त साम्राज्य के अंतिम शासकों को संदर्भित करते हैं, जो गुप्त साम्राज्य की शक्ति और महिमा के पतन के दौरान शासन कर रहे थे। इन शासकों का शासन लगभग 5वीं शताब्दी के अंत और 6वीं शताब्दी के दौरान हुआ। गुप्त साम्राज्य, जिसे भारतीय इतिहास में "स्वर्ण युग" के लिए जाना जाता है, ने चंद्रगुप्त प्रथम, समुद्रगुप्त और चंद्रगुप्त द्वितीय जैसे महान शासकों के तहत अपने चरम पर पहुंचा, लेकिन परवर्ती शासकों के समय में साम्राज्य की स्थिति कमजोर हो गई।
मुख्य परवर्ती गुप्त शासक और उनके शासनकाल की विशेषताएं-
पुरुगुप्त (467-473 ई.)-
उनका शासनकाल अल्पकालिक था। वे साम्राज्य को स्थिरता प्रदान करने में असफल रहे। इसने वैष्णव धर्म को छोड़कर बौद्ध धर्म अपना लिया।
बुधगुप्त (476-495 ई.)-
उनके शासनकाल में साम्राज्य और अधिक विभाजित हो गया। उन्हें पश्चिमी मालवा और मध्य भारत में विद्रोहों का सामना करना पड़ा।
नरसिंहगुप्त 'बालादित्य'(495- 510ई.)
हूण नेता तोरमाण और मिहिरकुल के हमले के दौरान वे शासक थे। बालादित्य ने मिहिरकुल को हराया, लेकिन साम्राज्य पहले ही कमजोर हो चुका था।
भानुगुप्त-
इसके समय के एरण अभिलेख (510 ई.) से पता चलता है कि इसका मित्र गोपराज हूणों के विरुद्ध भानुगुप्त की ओर से लड़ता हुआ मार डाला गया तथा उसकी पत्नी अग्नि में जल मरी। यह सती प्रथा का प्रथम अभिलेखीय प्रमाण है।
भानुगुप्त के बाद वैन्यगुप्त, कुमारगुप्त द्वितीय एवं विष्णु गुप्त शासक हुए। विष्णु इस वंश का अंतिम शासक था। लगभग सभी परवर्ती गुप्त शासको ने बौद्ध धर्म अपना लिया था।
विष्णुगुप्त (540 ई .के आसपास):
विष्णुगुप्त अंतिम ज्ञात गुप्त शासकों में से एक थे। उनके समय में गुप्त साम्राज्य केवल नाममात्र का रह गया था और क्षेत्रीय शक्तियां जैसे मौखरी और पुष्यभूति साम्राज्य प्रभावी हो गई थीं।
परवर्ती गुप्त साम्राज्य की कमजोरियां-
हूण आक्रमण: हूणों के आक्रमण ने साम्राज्य को गंभीर रूप से कमजोर किया।
आर्थिक गिरावट: बार-बार के युद्ध और बाहरी हमलों से खजाने खाली हो गए।
राजनीतिक अस्थिरता: कमजोर उत्तराधिकारी और आंतरिक संघर्षों ने साम्राज्य को कमजोर किया।
प्रांतीय स्वतंत्रता: साम्राज्य के विभिन्न हिस्सों में गवर्नरों और क्षेत्रीय शासकों ने स्वतंत्रता घोषित कर दी।
सांस्कृतिक योगदान-
हालांकि परवर्ती गुप्त शासकों के समय में साम्राज्य कमजोर हो गया था, लेकिन गुप्त युग की सांस्कृतिक और वैज्ञानिक उपलब्धियां (जैसे कला, वास्तुकला, और साहित्य) भारत के इतिहास में गहराई तक समाहित रहीं।
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निष्कर्ष-
परवर्ती गुप्त शासकों का शासन गुप्त साम्राज्य के पतन का समय था। यह कमजोर नेतृत्व, बाहरी आक्रमण और आंतरिक संघर्षों का युग था, जिसने इस महान साम्राज्य का अंत कर दिया।
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