गुप्त काल: षड्दर्शन क्या है ? चार्वाक दर्शन भी जाने

Gyanalay
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 गुप्त काल: षड्दर्शन 


भारत के प्रमुख षड्दर्शनों का अंतिम रूप से संकलन गुप्त काल में ही हुआ। इनका वर्णन निम्नलिखित है- 


षड्दर्शन Gyanalay


1. न्याय दर्शन (गौतम ऋषि द्वारा प्रवर्तित):


यह तर्क और प्रमाण पर आधारित है।


इस दर्शन का मुख्य आधार गौतम का प्रसिद्ध ग्रंथ न्याय सूत्र है।


न्याय दर्शन यह सिखाता है कि सत्य को जानने के लिए प्रमाणों का सहारा लेना चाहिए।


इसके चार प्रमाण हैं: प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, और शब्द


2. वैशेषिक दर्शन (कणाद ऋषि द्वारा प्रवर्तित):


यह दर्शन भौतिक पदार्थों और उनके गुणों का अध्ययन करता है।


इसी दर्शन ने भारत में भौतिक शास्त्र का प्रारंभ किया। 


यह दर्शन, जैन दर्शन से साम्यता रखता है।


इसमें जगत को अणुओं (परमाणु) और उनकी रचनाओं से निर्मित माना गया है।


3. सांख्य दर्शन (कपिल ऋषि द्वारा प्रवर्तित):


यह भारत का प्राचीनतम दर्शन है। 


इस दर्शन के प्रमुख सिद्धांत ईश्वर कृष्ण की पुस्तक संख्याकारिका में मिलता है।


सांख्य दर्शन, भी जैन दर्शन से समानता रखता है।


यह सृष्टि के निर्माण को प्रकृति (प्रकृति) और पुरुष (आत्मा) के द्वैत के आधार पर समझाता है।


यह ब्रह्मांड की 25 तत्त्वों के माध्यम से व्याख्या करता है।


4. योग दर्शन (पतंजलि ऋषि द्वारा प्रवर्तित):


यह मानसिक और शारीरिक अनुशासन पर केंद्रित है।


इस ग्रंथ के प्रमुख सिद्धांत योग सूत्र में मिलते हैं।


योग दर्शन अष्टांग योग (यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि) के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार की विधि प्रदान करता है।


योग दर्शन अष्टांग योग Gyanalay


5. मीमांसा दर्शन (जैमिनि ऋषि द्वारा प्रवर्तित):


यह वेदों के कर्मकांड और अनुष्ठानों की व्याख्या करता है।


इसके दो प्रकार हैं: पूर्व मीमांसा और उत्तर मीमांसा। पूर्व मीमांसा कर्मकांड पर बल देती है।


6. वेदांत दर्शन (बादरायण ऋषि द्वारा प्रवर्तित):


इसे उत्तर मीमांसा भी कहते हैं।


यह ब्रह्म और आत्मा के अद्वैत (अद्वैत वेदांत) या द्वैत (द्वैत वेदांत) के सिद्धांतों पर आधारित है।


इसका उद्देश्य आत्मा और परमात्मा की एकता को समझाना है।


      चार्वाक  दर्शन


भारतीय भौतिकवादी दर्शन को चार्वाक दर्शन या लोकायत दर्शन कहा जाता है। यह भारतीय दर्शन की वह धारा है जो भौतिकवादी, तर्कप्रधान, और इस लोक पर केंद्रित विचारधारा को प्रस्तुत करती है। चार्वाक दर्शन ने आत्मा, पुनर्जन्म, मोक्ष, और परलोक जैसे पारलौकिक सिद्धांतों को नकारते हुए केवल प्रत्यक्ष अनुभव और भौतिक संसार को ही सत्य माना।


चार्वाक दर्शन की मुख्य विशेषताएँ:


1. प्रत्यक्ष को प्रमाण मानना-


चार्वाक दर्शन केवल प्रत्यक्ष अनुभव और इंद्रियजन्य ज्ञान को सत्य मानता है।


अनुमान और शास्त्रों को अस्वीकार किया गया है क्योंकि ये भ्रम और कल्पना पर आधारित हो सकते हैं।


2. आत्मा का खंडन-


आत्मा को शरीर से अलग मानने के विचार को अस्वीकार करते हुए कहा गया कि आत्मा और शरीर एक ही हैं।


मृत्यु के बाद आत्मा का अस्तित्व समाप्त हो जाता है।


3. पुनर्जन्म और कर्म सिद्धांत का विरोध-


चार्वाक पुनर्जन्म, स्वर्ग-नरक, और कर्मफल के सिद्धांतों को नकारता है।


इसके अनुसार, यह जीवन ही वास्तविक है, और इसे सुखपूर्वक जीना चाहिए।


4. भौतिक सुखों पर बल-


"यावज्जीवेत सुखं जीवेत, ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत।
भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः॥"


अर्थात जब तक जीवित रहो, सुखपूर्वक रहो। ऋण लेकर भी घी पियो, क्योंकि शरीर के नष्ट हो जाने के बाद पुनर्जन्म नहीं होता।


5. वेद और धर्म का खंडन-


चार्वाक ने वेदों और धार्मिक कर्मकांडों को मानव समाज का भ्रमित करने वाला बताया।


इसके अनुसार, ब्राह्मण वर्ग ने स्वार्थवश इन धार्मिक कर्मकांडों को प्रचलित किया।


6. संसार को पंचमहाभूतों से निर्मित मानना-


चार्वाक दर्शन के अनुसार, संसार पंचमहाभूतों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) से बना है, और इनके मेल से जीवन उत्पन्न होता है।


चार्वाक दर्शन का महत्व-


चार्वाक दर्शन भले ही भारतीय दर्शन की मुख्यधारा का हिस्सा नहीं बन पाया, लेकिन यह भारतीय चिंतन में तर्क, भौतिकता और मानवतावाद के विचारों को सामने लाने वाला दर्शन है।

इसने उस समय के आध्यात्मिक और पारलौकिक विचारों को चुनौती दी, जिससे भारतीय दार्शनिक परंपरा में बहस और विचार-विमर्श की परंपरा को बल मिला।


ये सभी दर्शन एक-दूसरे से भिन्न होने के बावजूद, भारतीय आध्यात्मिक और दार्शनिक परंपरा का आधारभूत हिस्सा हैं।


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