श्लेष अलंकार के 10 उदाहरण
जी नमस्कार दोस्तों! Gyanalay में आपका स्वागत है। इस ब्लॉग में हम श्लेष अलंकार की परिभाषा और श्लेष अलंकार के 10 उदाहरण की चर्चा करेंगे। तो चलिए शुरू करते हैं।
श्लेष अलंकार किसे कहते हैं
जब किसी काव्य में कोई शब्द एक ही बार प्रयुक्त हो लेकिन उसका अर्थ दो या दो से अधिक निकले तो वह श्लेष अलंकार होगा
जैसे- माया महाठगिनी हम जानी। तिरगुन फाँस लिए कर डौले बोलै मधुरी बानी।
यहाँ माया शब्द एक बार प्रयुक्त हुआ है लेकिन इसके दो अर्थ हैं - महा ठगिनी और मधुर बोलने वाली
१. मेरी भव बाधा हरो, राधा नागरी सोय। जा तन की झाँई परै, स्याम हरित दुति होय।
यहाँ हरित शब्द एक बार प्रयुक्त हुआ है लेकिन इसके दो अर्थ हैं - हरा रंग और प्रसन्न होना
२. मंगन को देखि पट देत बार बार है
यहाँ पट का दो अर्थ है - वस्त्र और किवाड़
३. चिरजीवौ जोरी जुरे क्यों न सनेह गंभीर ।
को घटि ए वृषभानुजा वे हलधर के बीर ।।
को घटि ए वृषभानुजा वे हलधर के बीर ।।
पंक्ति में श्लेष अलंकार है. इस पंक्ति में वृषभानुजा और हलधर के दो-दो अर्थ हैं:
वृषभानुजा के दो अर्थ हैं:
वृषभानु की पुत्री राधा
वृषभ की अनुजा गाय
हलधर के भी दो अर्थ हैं:
बलराम
हल को धारण करने वाला बैल
४. जो फल न होय कटु, कौन खाय फल को ।
खट्टा फल स्वादिष्ट तथा ही पाये बल को ।।
यहाँ कटु के दो अर्थ हैं - कड़वा और खट्टा । इस पंक्ति में श्लेष अलंकार है।
६. सुबरन को खोजत फिरत, कवि, व्यभिचारी, चोर
इस पंक्ति में सुबरन के दो अर्थ है : सुंदर और सोना ।
७. जो चाहो चटक न घटे, मैलो होय न मित्त।
रज राजस न छुवाइए, नेह चीकने चित्त ।
यहाँ श्लेष अलंकार है । चटक के दो अर्थ निकलते हैं - चमकीला और प्रतिष्ठा
८. सीधे चलते राह जो , रहते सदा निशंक । जो करते विप्लव, उन्हें हरि का है आतंक ।।
यहाँ हरि के दो अर्थ हैं : भगवान तथा बंदर
९. गुन से लेत रहीम जन सलिल कूप टेकाढी । कूपहु ते कन्हु होत है, मन काहू को बढ़ी ।।
यहाँ कूप के दो अर्थ हैं - कूप और मन
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून। पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून।।
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून।।
यहाँ पानी के तीन है - चमक, लज्जा और जल