बंगाल का पाल वंश
पाल वंश (8वीं से 12वीं शताब्दी) प्राचीन भारत का एक प्रमुख राजवंश था, जिसने मुख्य रूप से बंगाल, बिहार और ओडिशा के कुछ हिस्सों पर शासन किया।
इस वंश की स्थापना गोपाल नामक राजा ने की थी।
पाल वंश बौद्ध धर्म के संरक्षक थे और भारतीय इतिहास में सांस्कृतिक, राजनीतिक और धार्मिक योगदान के लिए प्रसिद्ध हैं।
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पाल वंश का उदय और संस्थापक
गोपाल (750-770 ई.):
📚 गोपाल ने इस वंश की स्थापना की।
📚 बंगाल में अराजकता और अशांति के समय स्थानीय सामंतों और जनता ने गोपाल को राजा चुना।
📚 उनका शासन कुशल प्रशासन और स्थिरता लाने के लिए जाना जाता है।
धर्मपाल (770-810 ई.):
📝 गोपाल के पुत्र धर्मपाल ने पाल साम्राज्य को मजबूत किया।
📝 उन्होंने कन्नौज पर विजय प्राप्त कर अपना प्रभाव उत्तर भारत तक फैलाया।
धर्मपाल ने विक्रमशिला तथा सोमपुरी में प्रसिद्ध बौद्ध विहारों की स्थापना की।
🎯 उसके राजसभा में प्रसिद्ध बौद्ध लेखक हरीभद्र निवास करता था।
🎯 धर्मपाल ने कन्नौज पर अधिकार कर एक शानदार दरबार का आयोजन किया। परंतु कन्नौज के लिए हुए त्रिपक्षीय संघर्ष में वह राष्ट्रकूट शासक ध्रुव से तथा प्रतिहार शासक वत्सराज से पराजित हुआ।
देवपाल (810-850 ई.):
✍🏻 धर्मपाल के उत्तराधिकारी देवपाल ने साम्राज्य का विस्तार किया।
✍🏻 उन्होंने असम और उड़ीसा तक अपना शासन फैलाया।
✍🏻 अरब यात्री सुलेमान ने देवपाल को प्रतिहार राष्ट्रकूट शासको से अधिक शक्तिशाली माना है।
✍🏻 उनके शासनकाल में कला और संस्कृति का विकास हुआ।
✍🏻 देवपाल के उत्तराधिकारी विग्रहपाल ने अपने पुत्र नारायणपाल के पक्ष में सिंहासन छोड़कर सन्यास ग्रहण कर लिया।
✍🏻 नारायण पाल की भी राजकाज से अधिक रुचि सन्यास जीवन में था।
महिपाल प्रथम (988 से 1038 ई.)
👉🏼 महिपाल प्रथम को पाल वंश का दूसरा संस्थापक माना जाता है। इसके काल में राजेंद्र चोल ने बंगाल पर आक्रमण किया तथा पाल शासक महिपाल को पराजित किया।
👉🏼 महिपाल ने बौद्ध भिक्षु अतिस के नेतृत्व में तिब्बत में एक धर्म प्रचारक मंडल भेजा था।
👉🏼 महिपाल की मृत्यु के बाद पाल वंश की अवनति प्रारंभ हो गई।
👉🏼 संध्याकर नंदी द्वारा रचित 'रामपाल चरित' के नायक रामपाल (1077 से 1120 ई.) को इस वंश का अंतिम शासक माना जाता है।
👉🏼 पाल राजाओं का शासन काल प्राचीन भारतीय इतिहास के उन राजवंशों में एक है जिन्होंने सबसे लंबे समय तक राज्य किया। 400 वर्ष के उनके दीर्घकालीन शासन में बंगाल का राजनीतिक एवं सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टियों से अभूतपूर्व विकास हुआ।
👉🏼 पाल शासको के समय में संतरक्षित और दीपांकर नामक बौद्ध विद्वानों ने तिब्बत की यात्रा की तथा कालांतर में धर्मस्वामी नामक विद्वान तिब्बत से भारत आया।