दिल्ली का चौहान वंश

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 दिल्ली का चौहान वंश 

दिल्ली का चौहान वंश

✏️ चौहान वंश के वंशावली तथा इतिहास का ज्ञान हमें विग्रहराज द्वितीय के प्रस्तर अभिलेख तथा सोमेश्वर के समय के 'बिजोलिया प्रस्तर' लेख से होता है।


✏️ इस वंश के प्रारंभिक नरेश कन्नौज के प्रतिहार शासको के सामंत थे। दसवीं शताब्दी के प्रारंभ में वाक्पतिराज प्रथम ने प्रतिहारों से अपने को स्वतंत्र कर लिया। उसके पुत्र सिद्धराज ने अपने राज्य का विस्तार करके 'महाराजाधिराज' की उपाधि धारण की।


✏️ चौहानों की राजधानी अजमेर थी।


✏️ सिद्धराज का उत्तराधिकारी विग्रहराज द्वितीय हुआ। हर्ष के लेख में कहा गया है कि उसने अपने राजवंश की लक्ष्मी का उद्धार किया तथा चालुक्य शासक मूलराज प्रथम को पराजित किया।


✏️ विग्रहराज तृतीय के समय परमारों के साथ चौहानों की मित्रता स्थापित हुई तथा परमार वंश की कन्या राजदेवी का विवाह उसके साथ संपन्न हुआ।


✏️ पृथ्वीराज प्रथम के बाद उसका पुत्र अजयराज शासक बना वह एक महान निर्माता था। उसने अजमेर नगर की स्थापना की तथा उसे अपनी राजधानी बनाई।


✏️ अजयराज का उत्तराधिकारी अर्णोराज (1130 से 1150ई.) एक महत्वपूर्ण शासक था। उसने अजमेर के निकट सुल्तान महमूद की सेना को पराजित किया।



✏️ अर्णोराज का पुत्र विग्रहराज चतुर्थ (बीसलदेव) चौहान वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था। उसकी सबसे बड़ी सफलता दिल्ली के तोमरो की स्वाधीनता समाप्त करके उनको अपना सामंत बनाना था।


✏️ बीसलदेव विजेता होने के साथ-साथ एक विद्वान भी था। उसने हरिकेल नामक एक संस्कृत नाटक की रचना की।जिसका कुछ अंश 'अढ़ाई दिन का झोपड़ा' नामक मस्जिद की दीवारों पर उत्कीर्ण किए गए हैं। उसके दरबार में सोमदेव निवास करता था जिसने 'ललित विग्रहराज' नामक एक ग्रंथ की रचना की।


✏️ 1178 ईस्वी में सोमेश्वर का पुत्र इतिहास प्रसिद्ध पृथ्वीराज तृतीय शासक हुआ। कथाओं में उसे 'राय पिथौरा' कहा गया है। इसने बुंदेलखंड के चंदेल शासक को 1182 ईस्वी में एक रात्रि अभियान में पराजित किया। इसमें चंदेल शासक के आल्हा-ऊदल नामक लोक प्रसिद्ध सेनानायकों ने भयंकर युद्ध किया।


✏️ 1186 ईस्वी में पृथ्वीराज तृतीय ने गुजरात के चालुक्य शासक भीम द्वितीय पर भी आक्रमण किया। 


✏️ 1191 ईस्वी में मोहम्मद गौरी तथा पृथ्वीराज तृतीय के बीच तराइन का प्रथम युद्ध हुआ जिसमें मोहम्मद गोरी पराजित हुआ।


✏️ अगले ही वर्ष 1192 ईस्वी में मोहम्मद गौरी व पृथ्वीराज चौहान के बीच तराइन का द्वितीय युद्ध हुआ। जिसमें पृथ्वीराज पराजित हुआ तथा उसे बंदी बना लिया गया। कुछ समय बाद उसकी हत्या कर दी गई।


✏️ तराइन के द्वितीय युद्ध का भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि इसके बाद ही भारत में तुर्की राज्य की स्थापना हुई।


✏️ पृथ्वीराज तृतीय के राजकवि चंद्रवरदाई ने 'पृथ्वीराज रासो' नामक अपभ्रंश महाकाव्य और जयानक ने 'पृथ्वीराज विजय' नामक संस्कृत काव्य की रचना की। अन्य रचनाओं में जयचंद्र का 'हम्मीर महाकाव्य' है जो चौहान वंश के इतिहास तथा परंपराओं का विवरण देता है।

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