गुर्जर प्रतिहार वंश

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 गुर्जर प्रतिहार वंश

गुर्जर प्रतिहार वंश


अग्निकुल के राजपूतों में सर्वाधिक प्रसिद्ध प्रतिहार वंश था जो गुर्जरी शाखा से संबंधित होने के कारण इतिहास में गुर्जर-प्रतिहार नाम से प्रसिद्ध हुआ। गुर्जर प्रतिहार वंश भारतीय इतिहास में एक प्रमुख राजवंश था, जो 8वीं से 11वीं शताब्दी तक उत्तर भारत में शासन करता रहा। इस वंश ने भारत में राजपूतों के गौरवशाली इतिहास की नींव रखी। गुर्जर प्रतिहार वंश ने भारत के सांस्कृतिक, राजनीतिक और सैन्य क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।


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स्थापना और उत्पत्ति:


गुर्जर प्रतिहार वंश की उत्पत्ति गुर्जर जाति से मानी जाती है।


इसे "प्रतिहार" नाम इसलिए मिला क्योंकि वे पहले राजाओं के लिए "प्रतिहार" (रक्षक/रक्षक सैनिक) का कार्य करते थे।


इस वंश की शुरुआत हरिश्चंद्र नामक राजा से होती है।


इस वंश की स्थापना नागभट्ट प्रथम ने 8वीं शताब्दी में की थी।


महत्वपूर्ण शासक


नागभट्ट प्रथम (730-756 ई.):


गुर्जर प्रतिहार वंश के संस्थापक


अरब आक्रमणकारियों को हराने में प्रमुख भूमिका निभाई।


वत्सराज (780-805ई.):


यह इस वंश का चौथा शासक था। इसे प्रतिहार साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।


कन्नौज के लिए त्रिपक्षीय संघर्ष इसी के समय में शुरू हुआ।


इस त्रिपक्षीय संघर्ष में उसने पाल शासक धर्मपाल को पराजित किया किंतु राष्ट्रकूट शासक ध्रुव से पराजित हुआ।


नागभट्ट द्वितीय (805-833ई.):


वत्सराज के बाद उसका पुत्र नागभट्ट द्वितीय गद्दी पर बैठा। उसने कन्नौज पर अधिकार करके उसे प्रतिहार साम्राज्य की राजधानी बनाया।


 मिहिर भोज (836-885 ई.):


इस वंश के सबसे महान शासकों में से एक।


उनके शासनकाल में प्रतिहार साम्राज्य अपनी चरम सीमा पर था।


उन्हें "आदिलराज" और "मिहिर भोज महान" कहा जाता है।


कन्नौज उनकी राजधानी थी।


परंतु भोज को अपने समय के दो प्रबल शक्तियों- पाल नरेश देवपाल तथा राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण द्वितीय से पराजित होना पड़ा।


महेंद्रपाल :


मिहिर भोज के उत्तराधिकारी।


शिक्षा और कला के संरक्षक।


इसके दरबार में प्रसिद्ध विद्वान राजशेखर निवास करते थे जिन्होंने- कर्पूरमंजरी,काव्य मीमांसा, बालभारत, बाल रामायण, भुवनकोश तथा हरविलास जैसे प्रसिद्ध जैन धर्म ग्रन्थों की रचना की।


राज्यपाल और विजयपाल:


इन शासकों के समय वंश कमजोर होने लगा और अंततः इसे गजनी के महमूद के आक्रमणों का सामना करना पड़ा।


प्रतिहार साम्राज्य का विस्तार:


प्रतिहार वंश का साम्राज्य मुख्य रूप से उत्तर और मध्य भारत में फैला हुआ था।



इसकी सीमाएं राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और हरियाणा तक फैली थीं।


कन्नौज को इस साम्राज्य का केंद्र माना जाता था।


सांस्कृतिक योगदान:


कला और वास्तुकला:


गुर्जर प्रतिहार शासकों ने अनेक मंदिरों का निर्माण कराया।

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खजुराहो के कुछ प्राचीन मंदिर इसी वंश के दौरान बनाए गए।


धार्मिक सहिष्णुता:


मुख्य रूप से हिंदू धर्म के अनुयायी थे, लेकिन अन्य धर्मों का भी सम्मान करते थे।


संस्कृति और साहित्य:


संस्कृत भाषा और साहित्य का बड़ा विकास हुआ।


शिक्षा के क्षेत्र में नए केंद्र स्थापित किए गए।


प्रतिहार वंश का पतन:


10वीं शताब्दी के अंत तक प्रतिहार वंश कमजोर होने लगा।


गजनी के महमूद के आक्रमणों और अन्य स्थानीय राजवंशों के उदय से उनका पतन हुआ।


अंततः इस वंश का शासन 11वीं शताब्दी में समाप्त हो गया।

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