जेजाक भुक्ति के चंदेल
✍🏻 राजधानी- प्रथम राजधानी कालिंजर, द्वितीय राजधानी खजुराहो
✍🏻 जेजाक भुक्ति का चंदेल वंश भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता हैं। यह वंश मुख्य रूप से मध्यकालीन भारत में 9वीं से 13वीं शताब्दी के दौरान उत्तर भारत में बुंदेलखंड क्षेत्र पर शासन करता था।
✍🏻 जेजाक भुक्ति, जिसे आज बुंदेलखंड क्षेत्र कहा जाता है, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में फैला हुआ था। इसका नाम चंदेल शासक जेजा (यशोवर्मन जयसिंह) भी कहा जाता है के नाम पर पड़ा, जिनका शासनकाल इस क्षेत्र में चंदेल वंश की नींव स्थापित करने वाला माना जाता है।
चंदेल वंश की विशेषताएँ:
उत्पत्ति: चंदेल वंश की उत्पत्ति के बारे में कई मत हैं। कुछ इसे चंद्र वंशीय क्षत्रियों से जोड़ते हैं, तो कुछ इसे नागवंश से संबंधित मानते हैं।
प्रमुख शासक:
नन्नुक: चंदेल वंश का संस्थापक माना जाता है।
यशोवर्मन: जिन्होंने खजुराहो के मंदिरों का निर्माण कार्य आरंभ किया और अपनी शक्ति को विस्तारित किया।
धंगदेव: चंदेल वंश के महान शासकों में से एक। इनके समय में चंदेल वंश अपनी ऊंचाई पर था।
विद्याधर (1019 से 1029 ई.): चंदेल शासको में सर्वाधिक शक्तिशाली था। विद्याधर ने 1019 ईस्वी में गुर्जर प्रतिहार शासक राज्यपाल का वध कर दिया क्योंकि वह महमूद गजनवी से युद्ध करने के स्थान पर भाग खड़ा हुआ था।
विद्याधर ने मालवा के परमार शासक भोज तथा कलचुरी शासक गांगेय देव को पराजित कर उसे अपने अधीन किया। उसका शासन काल चंदेल साम्राज्य के चरमोत्कर्ष को व्यक्त करता है।
विद्याधर एकमात्र भारतीय शासक था जिसे महमूद गजनवी पराजित नहीं कर सका तथा उससे संधि किया।
परमर्दिदेव (परमाल): अंतिम महान शासक, जिनका सामना पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गौरी से हुआ।
1182 ईस्वी में पृथ्वीराज ने इसे पराजित कर महोबा पर तथा 1203 ईस्वी में कुतुबुद्दीन ऐबक ने कालिंजर पर अधिकार कर लिया।
वास्तुकला और संस्कृति:
चंदेल वंश कला और संस्कृति के संरक्षक थे।
खजुराहो मंदिर: चंदेलों के शासनकाल में निर्मित ये मंदिर विश्व प्रसिद्ध हैं। इनमें नागर शैली की वास्तुकला और जटिल मूर्तिकला देखी जा सकती है।
चंदेलों ने जल संरक्षण के लिए भी अनेक झीलें और जलाशयों का निर्माण करवाया, जैसे चंद्र सागर और शिव सागर।
सामरिक शक्ति:
चंदेल वंश ने अपनी सेनाओं को मजबूत रखा और बुंदेलखंड क्षेत्र में कई दुर्गों (किलों) का निर्माण किया, जिनमें कालिंजर का किला प्रमुख है।
कालिंजर दुर्ग उनके सामरिक कौशल का प्रमाण है और इतिहास में कई लड़ाइयों का केंद्र रहा है।
पतन:
चंदेलों का पतन 13वीं शताब्दी में दिल्ली सल्तनत के बढ़ते प्रभाव और आक्रमणों के कारण हुआ।
चंदेल वंश अपनी कला, संस्कृति और स्थापत्य के लिए भारतीय इतिहास में सदैव स्मरणीय रहेगा।