पूर्व मध्यकाल (800-1200ई.)

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 पूर्व मध्यकाल (800-1200ई.)


पूर्व मध्यकाल (800-1200ई.)

 

उत्तर भारत की राजनीतिक स्थिति


पांचवीं शताब्दी के अंत तक गुप्त साम्राज्य का पतन हो गया था। विदेशों से बर्बर हूणों के होने वाले आक्रमण तथा आंतरिक विघटन गुप्त साम्राज्य के पतन के मुख्य कारण थे। जिसके परिणामस्वरुप गुप्त साम्राज्य के प्रांतीय शासको ने अपनी स्वतंत्रता घोषित कर उत्तर भारत के विभिन्न भागों में अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिए। गुप्त साम्राज्य के पतन के साथ ही मगध साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र जो 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व से छठी शताब्दी ईस्वी तक उत्तर भारत की राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बिंदु रहा था का गौरव भी नष्ट हो गया। पाटलिपुत्र के स्थान पर अब कन्नौज के रूप में उत्तरी भारत के एक नवीन राजनीतिक केंद्र का उदय हुआ


 स्मरणीय बिन्दु:


👉🏼 डॉ. ईश्वरी प्रसाद ने इस काल के भारत को 'राज्य के अंदर राज्यों का काल' कहा है।


👉🏼 इस कल के दौरान दूसरा महत्वपूर्ण परिवर्तन जो हुआ, वह था सामंतवाद का उदय, जिसने भारतीय इतिहास को प्राचीन से मध्यकाल में रूपांतरित किया।


👉🏼 इस समय उत्तर भारत के अधिकांश राजवंश राजपूत थे इसलिए इस युग के इतिहास को 'राजपूत युगीन इतिहास' भी कहा जाता है।


👉🏼 राजपूतों  की उत्पत्ति के विषय में भिन्न-भिन्न मत प्रचलित हैं।कुछ विद्वान इसे भारत में रहने वाली एक जाति मानते हैं तो कुछ अन्य इन्हें विदेशियों की संतान मानते हैं।


👉🏼 कुछ इतिहासकारों ने राजपूतों को आबू पर्वत पर वशिष्ठ के अग्निकुंड से उत्पन्न हुआ मानते हैं।यह सिद्धांत चंदबरदाई के पृथ्वीराज रासो पर आधारित है तथा प्रतिहार,चालुक्य, चौहान और परमार राजपूतों का जन्म इससे माना जाता है।


👉🏼 कर्नल टाड के अनुसार राजपूत शक- कुषाण तथा हूण आदि विदेशी जातियों की संतान थे।


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👉🏼 डॉ. ईश्वरी प्रसाद तथा डी.आर. भंडारकर भी राजपूतों को विदेशी मानते हैं।


👉🏼 वी.डी.चट्टोपाध्याय के अनुसार राजपूत सामाजिक-आर्थिक प्रक्रिया  की उपज थे ।


👉🏼 जी.एच.ओझा, सी. वी. वैद्य तथा अन्य कई इतिहासकार यही मानते हैं कि राजपूत प्राचीन क्षत्रियों की ही संतान है।


👉🏼 कनिंघम ने राजपूतों को यू-ची (कुषाण) जाति का वंशज माना है।


👉🏼 स्मिथ महोदय ने यह तर्क प्रस्तुत किया है कि राजपूत प्राचीन आदिम जातियां गोंड, खरवार, भर आदि के वंशज थे।


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