कश्मीर के राजवंश
कश्मीर के हिंदू राज्य का इतिहास कल्हण की राजतरंगिणी से ज्ञात होता है।
कल्हण लोहार वंश के शासक हर्ष एवं जय सिंह का आश्रित कवि था। उसने राजतरंगिणी की रचना जय सिंह (1127-1159ई.) के समय में की।
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कश्मीर का कार्कोट वंश
कश्मीर का कार्कोट वंश प्राचीन भारत के महत्वपूर्ण राजवंशों में से एक था, जिसने 7वीं से 9वीं शताब्दी के बीच कश्मीर पर शासन किया। इस वंश की स्थापना दुर्लभवर्धन ने 7वीं शताब्दी में की थी। कार्कोट वंश का नाम नागों के राजा कार्कोटक के नाम पर रखा गया था, जो हिंदू पौराणिक कथाओं में एक प्रमुख नाग देवता माने जाते हैं।
कश्मीर का कार्कोट वंश : प्रमुख शासक
दुर्लभवर्धन (626-661 ईस्वी):
वंश के संस्थापक, जिन्होंने गोंडा वंश के अंतिम शासक की बेटी से विवाह कर सत्ता प्राप्त की।
ललितादित्य मुक्तापीड (724-760 ईस्वी):
👉🏼 कार्कोट वंश का सबसे प्रसिद्ध और शक्तिशाली शासक।
👉🏼 उन्होंने एक विशाल साम्राज्य का निर्माण किया जो कश्मीर से लेकर अफगानिस्तान, पंजाब, और बंगाल तक फैला था।
👉🏼 इसने तिब्बतियों, कंबोजों, तुर्कों आदि को पराजित किया।
👉🏼 733 ईस्वी में इसने चीनी शासन के दरबार में एक दूत मंडल भेजा।
👉🏼 कला, वास्तुकला और साहित्य को उन्होंने विशेष संरक्षण दिया।
👉🏼 मार्तंड सूर्य मंदिर (सूर्य देवता को समर्पित) का निर्माण उनके शासन काल की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी।
✏️ चंद्रापीड और तरापीड भी इस वंश के अन्य प्रमुख शासक थे।
कश्मीर का कार्कोट वंश : सांस्कृतिक योगदान
👉🏼 कार्कोट वंश के शासनकाल में कश्मीर सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से समृद्ध हुआ।
🎯 बौद्ध धर्म और शैव धर्म दोनों को संरक्षण मिला।
🎯 वास्तुकला में नए मंदिरों और भवनों का निर्माण हुआ।
कश्मीर का कार्कोट वंश : पतन
कार्कोट वंश का पतन 9वीं शताब्दी के मध्य में हुआ, जब इस वंश के अंतिम शासक को उग्र आंदोलन और आंतरिक विद्रोहों का सामना करना पड़ा। इसके बाद उत्तरी भारत में उत्पल वंश का उदय हुआ।
कश्मीर का कार्कोट वंश : ऐतिहासिक महत्व
📚 कार्कोट वंश का काल राजतरंगिणी (कल्हण द्वारा लिखित) में विस्तृत रूप से वर्णित है, जो कश्मीर का एक प्रमुख ऐतिहासिक ग्रंथ है।
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📚 इस वंश ने न केवल क्षेत्रीय राजनीति को प्रभावित किया बल्कि भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।