राष्ट्रकूट वंश: इतिहास, शासक, और सांस्कृतिक उपलब्धियाँ
👋 नमस्कार दोस्तों! इस ब्लॉग में हम राष्ट्रकूट वंश के बारे में विस्तार से जानेंगे।

📑 विषय सूची (Table of Contents)
🌍 राष्ट्रकूट वंश का परिचय
प्रारंभ और स्थापना राष्ट्रकूट वंश की स्थापना दंतिदुर्ग (735-756 ई.) ने की थी। वह चालुक्यों के सामंत थे, लेकिन उन्होंने स्वतंत्र होकर एक नया साम्राज्य स्थापित किया। राष्ट्रकूट वंश भारतीय इतिहास में एक महान दक्षिणी साम्राज्य था, जिसने 8वीं से 10वीं शताब्दी के बीच दक्कन क्षेत्र पर शासन किया। यह वंश अपनी सैन्य शक्ति, सांस्कृतिक उपलब्धियों और वास्तुकला में उत्कृष्टता के लिए जाना जाता है। राष्ट्रकूटों की राजधानी मान्यखेत (वर्तमान कर्नाटक के गुलबर्गा जिले में) थी।
👑 प्रमुख शासक
- दंतिदुर्ग (735-756 ई.): राष्ट्रकूट वंश का संस्थापक। उसने मालवा और कोंकण के क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की।
- कृष्ण I (756-774 ई.): उसने एलोरा में प्रसिद्ध कैलाश मंदिर का निर्माण कराया। कला और स्थापत्य में उसका योगदान अतुलनीय था।
- ध्रुव (780-793 ई.): गोविंद द्वितीय के पश्चात उसका पुत्र ध्रुव 780 ईस्वी में शासक बना । ध्रुव प्रथम राष्ट्रकूट शासक था जिसने उत्तर भारत पर आधिपत्य के लिए चल रहे त्रिपक्षीय संघर्ष में सफलतापूर्वक हस्तक्षेप किया और गुर्जर प्रतिहार शासक वत्सराज और पाल शासक धर्मपाल को पराजित किया। उत्तर भारत के अपने सफल अभियानों के पश्चात ध्रुव ने अपने राज्य चिन्ह पर गंगा और यमुना के प्रतीक अंकित कराया। ध्रुव ने अपने तीसरे तथा योग्य पुत्र गोविंद तृतीय के पक्ष में सिंहासन छोड़ दिया।
- गोविंद III (793-814 ई.): उसने कांची, कन्नौज और दक्षिण भारत के बड़े हिस्सों पर विजय प्राप्त की। गोविंद तृतीय ने पाल शासक धर्मपाल और गुर्जर प्रतिहार शासक नागभट्ट द्वितीय को पराजित कर मालवा पर अधिकार कर लिया। उसकी सैन्य शक्ति ने राष्ट्रकूट साम्राज्य को व्यापक किया।
- अमोघवर्ष I (814-878 ई.): वह राष्ट्रकूट वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक था। उसने अपनी राजधानी मान्यखेत में स्थापित की। वह कला और साहित्य का महान संरक्षक था। इसने कविराज मार्ग नामक कन्नड़ भाषा में एक काव्य ग्रंथ की रचना की। इसके राज्यसभा में एक विद्वान निवास करते थे। जैसे-आदि पुराण के लेखक जिनसेन तथा गणितसार संग्रह के लेखक महावीर आचार्य आदि। यह जैन धर्म का पोषक था परंतु हिन्दू धर्म का भी सम्मान करता था। कहा जाता है कि एक अवसर पर उसने अपने बाएं हाथ की उंगली महालक्ष्मी को चढ़ा दी थी जिसका वह अनन्य भक्त था।
- इंद्र तृतीय (915 से 927 ई.): इसने 915 ईस्वी में गुर्जर प्रतिहार शासक महिपाल को पराजित कर कन्नौज को लूट लिया। इसके समय में भारत भ्रमण पर आए हुए अरब यात्री अलमसूदी के अनुसार राष्ट्रकूट शासक भारत का सर्वश्रेष्ठ शासक था।
- कृष्ण तृतीय (939- 965ई.: इसने चोल शासक परान्तक प्रथम को पराजित कर चोल राज्य के उत्तरी भाग को हस्तगत कर लिया। कृष्ण तृतीय ने अपने पड़ोसी राजाओं के विरुद्ध युद्ध नीति अपनाकर उन्हें अपना विरोधी बना लिया और इस कारण वंश के उत्तराधिकारियों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा। 974-75 में चालुक्य शासक तैल द्वितीय ने राष्ट्रकूट वंश के अंतिम शासक कर्क द्वितीय को परास्त कर उसके राज्य पर अधिकार कर लिया और कल्याणी के चालुक्य वंशीय राज्य की स्थापना की।
🏛️ सांस्कृतिक उपलब्धियाँ
- वास्तुकला: एलोरा का कैलाश मंदिर उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है। अजन्ता और एलोरा की गुफाएं राष्ट्रकूट कला का प्रतीक हैं।
- साहित्य: संस्कृत और कन्नड़ भाषा में कई महान कृतियों का सृजन हुआ। अमोघवर्ष ने 'काव्यमीमांसा' नामक कृति लिखी।
- प्रशासन: राष्ट्रकूटों का शासन केंद्रीकृत था, लेकिन उन्होंने स्थानीय प्रशासनों को भी स्वतंत्रता दी। सेना की मजबूत संगठन शक्ति और सैन्य अभियानों के लिए वे जाने जाते थे।
- पतन के कारण: राष्ट्रकूटों का पतन 10वीं शताब्दी के अंत में चालुक्यों के उभार के कारण हुआ। 973 ई. में तैलप II ने राष्ट्रकूटों को हराकर चालुक्य वंश की पुनः स्थापना की।
❓ सामान्य प्रश्न (FAQs)
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प्रश्न: राष्ट्रकूट वंश की राजधानी कहाँ थी?
उत्तर: राष्ट्रकूटों की राजधानी मान्यखेत (वर्तमान कर्नाटक) थी।
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प्रश्न: कैलाश मंदिर का निर्माण किसने कराया?
उत्तर: कृष्ण I ने एलोरा में कैलाश मंदिर का निर्माण कराया।
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